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बढ़ते संक्रमण में क्यों महत्वपूर्ण हो गयी पंचायतों की भूमिका


राकेश कुमार मालवीय

कोविड-19 वायरस की दौड़ अब उतनी ही तेजी से गांव की ओर भी हो रही है। पहली लहर में उसने गांवों को बख्श दिया था, पर दूसरी लहर में जिस तेजी से यह अपने पैर पसार रहा है और उसके मुकाबले जो लचर स्वास्थ्य ढांचा है, उससे स्थिति जानलेवा होते दिखाई दे रही है। ऐसे में पंचायती राज संस्थाओं की, पंच-सरपंचों की, ग्राम सभाओं की, स्वास्थ्य और स्वच्छता समितियों की, ग्राम सुरक्षा दलों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो गयी है। ऐसे में आज पंचायत राज दिवस इस संक्रमण काल में और भी महत्वपूर्ण हो गया है। इस खास दिन पर पंचायतों को अपनी क्षमताओं को समझना चाहिए और कोविड 19 के खिलाफ इस लड़ाई को स्व विकेन्द्रीकृत करके देश बचाने में अपने योगदान को चमकते अक्षरों में लिख देना चाहिए।

ये अलग बात है कि मध्यप्रदेश में पंचायत राज संस्थाओं के चुनाव पिछले साल से ही पेंडिंग चल रहे हैं। यदि सब कुछ ठीक रहता तो नए सरपंचों का एक साल लगभग पूरा हो गया होता। ऐसा नहीं है इस बीच चुनाव नहीं हुए, मध्यप्रदेश में विधायकों के सामूहिक इस्तीफों के बाद खाली विधानसभा सीटों पर पूरे जोर-शोर से, पूरी क्षमता से चुनाव करवाए गए। राजनीतिक गतिविधियां चलती रहीं। दमोह में भी हाल ही में उपचुनाव हो गया। नगरीय निकायों के चुनाव कराए जाने की हलचल तो फिर भी हुई, लेकिन पंचायत चुनाव कराए जाना कभी प्राथमिकता में नजर नहीं आया। अलबत्ता पुराने पंचायत प्रतिनिधि ही काम चला रहे हैं।

पांच साल के बाद किसी भी पंचायत प्रतिनिधि को थका देने के लिए काफी होता है, एक टेम्पररी व्यवस्था के साथ वह उतने उत्साह से काम नहीं कर पाता, जबकि कोविड जैसे दौर में पंचायतों को और मेहनत से काम करना इसलिए भी जरूरी था, क्योंकि कोविड के पहले साल में हमने पलायन की भयंकर त्रासदी को भी देखा है। टोटल लॉकडाउन के दुख भी सहे हैं। इन परिस्थितियों में मनरेगा जैसी शक्तिशाली योजनाओं का होना सबसे बड़ा सहारा रहा है। मनरेगा पंचायतों के माध्यम से संचालित होती है। इसने लोगों की आजीविका और ग्रामीण विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालांकि यूपीए सरकार की फ्लेगशिप योजना होने के चलते कभी उसे एनडीए सरकार ने कोविड से पहले ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी, बल्कि असफलता का स्मारक ही बता दिया था। अनुभवों ने बताया है कि जहां पंचायतें जितना अच्छी होंगी वह अपने गांव का विकास मनरेगा और ऐसी ही योजनाओं से करवा सकेंगी। कोविड की पहली लहर के बीच मनरेगा ने यह साबित किया कि वह ग्रामीण भारत की जीवनरेखा है, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि जहाँ साल 19-20 में मनरेगा में 26535.44 लाख कार्यदिवस का सृजन हुआ वहीँ कोविड की विभीषिका के बीच यह बढकर 36224.75 लाख हो गया. इसलिए यदि परिस्थितियां बिगड़ी तो यही पंचायतें ग्रामीण भारत की 70 प्रतिशत आबादी को राहत देने का काम करेंगी।

महात्मा गांधी भी भारत में पंचायतों के विकेन्द्रीकरण के माध्यम से देश का विकास चाहते थे। उनके लिए असली भारत गांवों में ही बसता था और इसीलिए वह ग्राम स्वराज का सपना देखते थे। संविधान के भाग क में कहा गया है कि पंचायतों को ‘स्वायत्तशास  संस्थानों’ के रूप में कार्य करने और अपने क्षेत्रों में नागरिकों को कुछ बुनियादी सेवाएं प्रदान करने के निर्देश हैं। ‘आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2009’ के प्रावधानों के अनुसार, प्रत्येक पंचायत आपदा प्रबंधन योजनाओं को तैयार करने के लिए एक 'स्थानीय प्राधिकरण' है। उन्हें कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने केलिए  वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ काम करने की आवश्यकता है।

 इस महामारी से लड़ने के लिए भी हमें ग्राम पंचायतों को ताकतवर और उर्जावान बनाना होगा, क्योंकि संक्रमण बहुत तेजी से बढकर अब गाँव के मेड़ो तक पहुँच गया है. मप्र के जिलों में 186 गुना तक केस बढ़ चुके हैं. गांव के गांव बीमार हैं, मौत की ख़बरें आने लगी हैं.

ऐसे में जरूरी यह हो जाता है कि पंचायतें अपने यहां ऐसी व्यवस्थाएं बनाएं जिनसे गांवों में वायरस प्रवेश ही नहीं कर पाए। वहां पर सोशल डिस्टेंसिंग का, मास्क पहनने का पालन करवाया जाए। बाहर से आने वाले लोगों पर नजर रखी जाए, संदिग्ध होने पर समुचित प्रबंधन किया जाए। इसमें ग्राम स्तर पर गठित किए गए ग्राम सुरक्षा दलों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इसमें महिला स्व सहायता समूहों का उपयोग भी किया जा सकता है।

हालाँकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस परिस्थिति को समझ लिया है, उन्होंने पंचायत राज दिवस से एक दिन पहले पंचायत प्रतिनिधियों की वीडियो कांफ्रेंसिंग की और कहा कि कोरोना के विरूद्ध युद्ध में मुख्यमंत्री से लेकर पंच तक एक हो जाएं तो कोरोना को पराजित किया जा सकता है। उन्होंने ग्रामीण इलाकों में कोरोना कर्फ्यू लगाने के लिए पहले ही अपील की है, इसका असर भी दिखाई दे रहा है, पर जरूरी यह भी होगा कि लोगों की खाद्य सुरक्षा को भी देखा जाए. इसके लिए तीन महीने का नि:शुल्क राशन उपलब्ध कराने के लिए आदेश जारी कर दिए गए हैं। पंचायतें नजर रख कर उन्हें जरूरतमंदों के हाथों तक बिना डंडी मारे पहुंचा सकती हैं. उन्हें ऐसा करना ही होगा, नहीं तो भुखमरी का एक दूसरा संकट खड़ा हो जाएगा क्योंकि यह स्थिति अगले तीन महीने तक समाप्त नहीं होने वाली.  

कोविड 19 की रोकथाम में टीकाकरण सबसे प्रभावी माध्यम होगा, एक मई से 18 साल से अधिक आयु वर्ग के लोगों का नि:शुल्क टीकाकरण किया जाएगा। इस टीकाकरण को लेकर भी समाज में सत्रह तरह की भ्रांतियां हैं, टीकाकरण की सफलता में भी पंचायतें अपनी भूमिका निभा सकती हैं।

यहां संदर्भ भले ही मध्यप्रदेश का आ रहा हो पर यह पूरे भारत की तस्वीर है। ग्रामीण भारत में कोविड के खिलाफ लड़ाई पंचायतों के माध्यम से ही सफल हो सकती

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