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मध्य प्रदेशः अटरिया बांध पर अटकी चौरासी गांव की जिन्दगानियां


( पटियेबाजी के मित्र अशोक मालवीय ने जबलपुर में अटरिया बांध के मुद्दे पर यह पड़ताल की है. प्रदेश में बन रहे बांधों से उपजी यह एक और दास्ताँ है. - पटियेबाजी )

 

 "म्हारी तो जमीन भी बिक गइ, जसे-तसे मजदूरी से चलत है परिवार...। साहिब अब विस्थापन का बाप भी आ जाए तब भी यहां से नहीं जाऊंगा। यहीं पैदा हुआ और यहीं मरूंगा।" उम्र के छ दशक पार कर चुके ग्राम सैलवारा के नन्हेलाल आदिवासी के द्वारा इस तरह की बात करते ही उनके चेहरे पर सलवटे स्पष्ट बयां करती हैए कि उनके अन्दर पीड़ा व दहशत का किस हद तक छिपी है। नन्हेलाल अपनी जिन्दगी के दर्द के कुछ अंष सुनाते हुये कहते है कि मेरे पास डेढ़ एकड़ जमीन थीए जिसे बेटे की बीमारी के इलाज की वजह से बिक गइ। अब तो जंगल से महुआए गुल्ली व तेंदू  पत्ता लाकर काम चलाता हू। तेंदू पत्ता से बीड़ी बनाकर बेचता हूए इसके अलावा खुली मजदूरी भी करता हू। सुना है कि सरकार हमें भगा रही है। मेरे पास तो जमीन भी नहीं बची है मुझे तो मुआवजा व जमीन भी नहीं देंगे जाने कहां जाना पड़ेगा वहां जंगल होगें भी की नहीं साहिब मेरी तो कर्इ पीढ़ी इसी गांव में रहती आर्इ है  उनकी सबकी यादे भी यहीं है... इस तरह का डर सिर्फ नन्हेंलाल का नहीं है, बलिक मध्यप्रदेश के जबलपुर व कटनी जिले के 84 गांव के गलियारे में खौफ का कहर इस कदर फैला है कि लोगों की रातों की नीद व दिन का चेन सब कुछ छिन गया है। खौफ है दानासुर बनकर आए अटरिया बांध के निर्माण की आहट व उससे विस्थापन का!

सरकार ने 1972 में प्रस्तावित अटरिया बांध ;भोपाल दक्षिण.पूर्व से 300 किमी को नर्मदा की सहायक हिरन नदी पर सिहोरा व कुंडम तहसील के बीच बनना निर्धारित किया था। उस वक्त बांध के विरोध के आक्रोष की वजह से सरकार ने बांध निर्माण की प्रक्रिया को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। परन्तु पुनरू इस बांध के लिये डीपीआर; डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार किया जा रहा हैए जिससे विस्थापित होने वाले लगभग 3 लाख लोग दहशत में आ गए है। फिलहाल पहले चरण में 13 गांव को हटाने की प्रक्रिया जोरो पर है। इन लोगों के सामने पड़ोस में ही बने बरगी बांध के विस्थापितों की दर्दे.दषाए पुर्नवास के झूठे वादों की हकीकत जगजाहिर है। इनके सामने लाखों हेक्टेयर जमीन को सींचे जाने के सपने और वास्तविकता स्पष्ट हैए कि बरगी बांध से पानी बिजली घरों और उधोगों को जिस दरियादिली के साथ छोड़ रहे है। बरगी बांध के विषय में सरकार की कथनी व करनी की मंषा से घबराऐ हुये लोग अटरिया बांध के विरूद्व भी आर-पार की लड़ार्इ के लिये निकल पड़े है।
सैलवारा गांव के राकेष आदिवासी से विस्थापन की बात करते है तो आखे फाड़.फाड़कर चीखते.चिल्लातेए गुस्से से ओत.प्रोत होकर कहता है कि हमारे पूर्वजों की जमीनए जंगलए पहाड़.पर्वतए परम्पराएंए संस्कृतिए रिष्ते.नाते सब कुछ यहीं पर हैए देखते इनसे हमें दूर कौन करता है। जोषीले.आक्रोषित आवाज सिर्फ राकेष की नहीं हैए यह उन 84 गांव के लोगों की एक सुर की आवाज है जिसके चलते पदयात्राएं, आमसभाएं, बैठकें, रैली, धरने, भूख हड़तालें, शहर बन्द, रेल रोको अभियान जेल भरो अभियान चूल्हे ना जलाना आदि का सिलसिला चल पड़ा है। इन आदिवासियों को नहीं मालूम कि हटाने वाले वे कौन हैं। उनका हमने क्या बिगाड़ा है वे क्यों हमें भगा रहे हैं। लेकिन जब इनकी जान पर बन आर्इ तो घरवार छोड़कर बांध के विरूद्व छिडे़ अभियान के लिये रोड़ पर उतर आये है। बरगी विस्थापित संघ के राजकुमार सिन्हा कहते है कि जबलपुर में दूसरा बांध यानि इस क्षेत्र पर दोहरी मार हैए अटरिया बांध की लड़ार्इ सिर्फ उस क्षेत्र की लड़ार्इ नहीं हैं बलिक इसके विरोध में संस्थाए संगठन व राजनैतिक पार्टी व देश-प्रदेश के जनआन्दोलन भी इस लड़ार्इ को मजबूती दे रहे है।

अटरिया बांध के विरोध की लहर जब प्रदेष में गूंजी तब सरकार ने लोगों की लड़ाई को कमजोर करने के लिए कई शिगुफे छोड़े क्योंकि शासन प्रषासन नहीं चाहती है कि इस परियोजना का कोर्इ विरोध हो। इसलिये सारे मामले पर आला अफसरो व मंत्रियों ने चुप्पी साध ली। लोगों के जोष को शांत करने के लिये सरकारी लोग कहने लगे की यह बांध अब नहीं बनेगाए परन्तु चोरी.चोरी चुपके.चुपके बांध की प्रक्रिया को अंजाम देते चले जा रहे है। जनता के आक्रोष को शांत करने के लिये एक निर्णय व बहस के तहत यह तय किया गया था कि बांध की ऊंचार्इ 407 मीटर होने की वजह से कृषि क्षेत्र का बहुत बड़ा भाग डूब जाऐगाए अतरू इस बांध की ऊंचार्इ 4 मीटर कम करके 403 मीटर कर दी जाऐगीए जिसके लिये एनवीडीए को कटनी व जबलपुर का पुनरू सर्वेक्षण करने की जिम्मेदारी सौंपी गर्इ। विरोधाभास तो देखिये एक तरफ तो इस तरह की बात की गई वहीं दूसरी तरफ नर्मदा घाटी विकास मंत्री एवं नर्मदा विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष कन्हैया लाल अग्रवाल कहते है कि नर्मदा विकास प्राधिकरण की जो 29 वृहद परियोजनाएं हैए उनमें से किसी को भी लधु परियोजनाओं में परिवर्तित नहीं किया गया हैए इनमें प्रस्तावित अटरिया बांध भी शामिल है। अतरू उसमें फेरबदल करना तां संभव ही नहीं हैं। सरकारी नुमाइन्दे लोगों से कह रहे है कि बांध का स्थान बदल दिया गया हैए अगर स्थान बदल दिया गया है तो जिन लोगों के घर व खेत छीन रहे हैें उन्हें ही बताने में क्यों डर रहे हैघ् अगर बांध इस क्षेत्र में नहीं बन रहा है तो 13 गांव के लोगों को अधिग्रहण की सूची क्यों सौंपी गर्इघ् उसमें भी भ्रमित किया जा रहा है। एनवीडीए द्वारा मांगी गर्इ 13 गांव की एनओसी पर ग्राम पंचायतों ने आपतित के साथ विरोध दर्ज किया हैए क्योंकि जिन पत्रों को भेजकर एनओसी मांगी गर्इए उन पर ना किसी अधिकारीए ना किसी विभाग की सील.साइन तक नहीं है।

महगवां गांव के दरयाबसिंह आदिवासी कहते है कि सर्वेकर्ताओं ने बताया कि मेरा आधा घर डूब में आऐगा तथा आधा घर डूब में नहीं आ रहा हैं। साथ ही मेरे छोटे भार्इ मदनसिंह आदिवासी का घर दीवार से लगा हैए फिर भी उसको डूब क्षेत्र में शामिल नहीं किया गया। इस तरह की समस्याएं सिर्फ इन एक.दो गांव की नहीं हैए बलिक विस्थापित किये जाने वाले अधिकतर गांव का यहीं आलम हैए किसी गांव का कुछ भाग डूब में आ रहा हैए किसी गांव की कुछ जमीन डूब में आ रही हैए किसी का आधा घर डूब में आ रहा हैए क्या डूब के बाद पानी को मालूम होगा कि सरकार द्वारा खीचीं गर्इ लक्ष्मण रेखा के पार नहीं होेना हैघ् इस तरह का हास्यप्रद मजाक विस्थातिपों को मुलावजा व पुर्नवास देने की औपचारिक सोच व मंषा का प्रर्दाफास करने के लिये काफी है।

मजे की बात है कि जिस अटरिया बांध को बनाने का उददेष्य मैदानी क्षेत्र में सिंचार्इ की व्यवस्था करना व  शहरवासियों को पानी की सौगात देना है। इसके पीछे मुडकर देखे तो जिन आदिवासी व पहाड़ी अंचल में काली किस्म की मिटटी वाली उपजाऊ जमीन की बली चढ़ रही है। दूसरा इस क्षेत्र में अधिकतर कुआए टयूबवेलए नदी व नाले सिंचार्इ के लिये पर्याप्त साधनों की भरमार को मारा जा रहा है। ग्राम भंडरा की राधाबार्इ कहती है कि हम सोना उगलने वाली जमीन नहीं खोना चाहते है। विस्थापन के बाद हमें जमीन नहीं मिलेगीए यदि मिली भी तो ऐसी जमीन नहीं होगीए वे तो कंकड.पत्थर वाली जमीन का छोटा सा टुकड़ा थमा देगेंए हम उसका क्या करेगेंघ्  खेती किसानी में बढ़ते व्यवसायीकरण की परछार्इ ने नगदी फसलों के पैर जमाने में मदद की हैए जिसके चलते परम्परगत मोटे अनाज व दलहल फसलें धीरे.धीरे नदारद हो रही है। वहीं इस पहाडी क्षेत्रडूब क्षेत्र में धानए गेहूूए चनाए मसूरए पीली बटरीए मक्काए उड़दए कोदों कुटकीए अरहरए बटरीए बाजरा आदि परम्परागत फसलों की मौजूदगी एक बड़ी व आदर्ष की बात हैए जो कि बांध के प्रभाव से चौपट हो जाऐगी।

साझा जनपहल के साथी भारत नामदेव व किसान संघर्ष समिति की सरिता कहते है कि जिस तरह सरकार अटरिया बांध के सपने संजोऐ बैठी हैए यदि बांध बन भी गया तोए जिनके खेत.खलियान व झुग्गी.झोपडे की नीव पर खड़ा किया जा रहा हैए उनको क्या फायदा होगाघ् जबलुपर जिले में दो बांध बनाये जा रहे हैए जिसका उददेष्य साफ है कि इस पानी को बरगी नहर के माध्यम से सतना रीवा जिले में सिंचार्इ के लिये परोसना है। मैदानी क्षेत्र को हरा.भरा करने के लिये उपजाऊ मिटटीए सिंचार्इ के पर्याप्त साधनए पषुधनए फलदार वृक्षए बाग बगीचाए जंगलए शुद्व पर्यावरणए मंदिरए मजिस्दए गुरूद्वाराए चर्चए आवागमन के साधनए भवन आदि से भरपूर सजे सजाये क्षेत्र को उजाड़कर लोगों की जिन्दगीए परम्पराए संस्कृतिए आजीविकाए रिष्ते.नातेए जंगल.जमीन को तहस.नहस करने का क्या औचित्य हैं?

श्री अशोक मालवीय सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं, होशंगाबाद में रहते हैं.  

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