1997 में अपने गांव से एक छोटी सी कोशिश शुरू की थी। बालप्रयास। यह एक त्रैमासिक बाल पत्रिका थी। रचनाएं इकट्ठा करने से लेकर छापने तक, सभी कुछ अपने हाथों से करना। बहुत सृजनात्मक काम था। अपने मित्र चम्पालाल और दूसरे साथियों के साथ चार साल तक यह क्रम लगातार चलता रहा। लगभग बीस अंक हमने निकाले। इनमें से लगभग 11 अंक हमारे पास सुरक्षित रह सके। इन अंकों को हम यहां चस्पा कर रहे हैं। कुछ यादों के रूप में। मन में बार बार ख्याल आता है कि यह सफर पिफर शुरू हो। राकेश मालवीय
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