राकेश कुमार मालवीय
लोकसभा में पेश किए गए एक जवाब की मानें तो देश में बाल विवाह का व्यवहार
तकरीबन खत्म कर दिया गया है. 2019—20 की अवधि में बाल अधिकार संरक्षण आयोग को 130
करोड़ की आबादी को छू रहे देश से बाल विवाह की 111 शिकायतें ही प्राप्त हुई हैं.
इसका एक मतलब यह है कि बाल विवाह का प्रचलन देश से तकरीबन खत्म हो गया है. इसका
दूसरा मतलब यह है कि बाल विवाह तो हो रहे हैं, लेकिन उनकी रिपोर्ट करने, रुकवाने या इस कुप्रथा को दूर करने में समाज की कोई रुचि नहीं है. और इसका
तीसरा मतलब यह है कि बाल विवाह की मॉनिटरिंग करने वाला सिस्टम ठीक से काम नहीं कर
रहा है. सरकार बाल विवाह रोकथाम के लिए हर साल बजट में ठीक—ठाक प्रावधान करती है. केन्द्र सरकार बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना में बाल
विवाह रोकने के लिए संजीदा है, वहीं राज्य सरकार के अपने अलग—अलग नामों से भी अभियान हैं.
बुधवार को लोकसभा में कार्ति पी चिंदम्बरम ने बाल विवाह के बारे में सवाल पूछा
था कि पिछले एक साल में बाल विवाह के कितने मामले दर्ज किए गए हैं और इसे दूर करने
के बारे में क्या कदम उठाए गए हैं. सवाल के जवाब में सामने आया है कि 2019—20 में एनसीपीसीआर को देश भर से बाल विवाह की केवल 111 शिकायतें ही प्राप्त
हुई हैं. इसमें सबसे ज्यादा 26 शिकायतें उत्तरप्रदेश, 16 शिकायतें कर्नाटक से, 12 शिकायतें तेलंगाना से, 11 शिकायतें बाल विवाह क मामलों में आगे रहे राजस्थान से, आठ शिकायतें बिहार से, 9 शिकायतें झारखंड से, चार—चार शिकायतें हरियाणा, मध्यप्रदेश और ओडिसा से
और देश की राजधानी दिल्ली से तीन शिकायतें ही प्राप्त हुई हैं. देश के 19 राज्य
तो ऐसे हैं जिनमें कोई भी शिकायत नहीं मिली है.
क्या इन आंकड़ों पर यकीन किया जा सकता है. जनगणना 2011 के आंकड़ों के मुताबिक देश में सर्वे से समय कुल 12107181 लोग ऐसे थे, जिनका विवाह कानूनी उम्र के पहले हो चुका था. इनमें से 5157863 महिलाएं और 6949318 पुरुष थे. यानी उनको अपने आप को विवाहित घोषित किया था. इसमें लड़के और लड़कियां थीं. इसको ऐसे समझा जा सकता है कि उनका बाल विवाह हुआ था.
राष्टीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण एक सरकारी सर्वेक्षण है. इसमें भी बाल
विवाह के आंकड़े दिए जाते हैं. इसके चौथे चक्र की रिपोर्ट भी चार साल पहले जारी की
गई थी. इस रिपोर्ट की भी माने तो देश में 26.8 प्रतिशत बच्चों का बाल विवाह होना
दर्ज किया गया है. एनसीआरबी के आंकड़े भी कुछ ऐसी ही कहानी कहते हैं. यदि हम
सामान्य तौर पर अखबारों को ही पलट लें तो किसी एक प्रदेश के पन्नों पर बाल विवाह
से संबंधी कई समाचार प्रकाशित होते हैं.
बाल विवाह के लिए देश में कानून यह कहता है कि यदि 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई पुरुष, किसी 18 वर्ष से कम आयु की लड़की से विवाह करता है तो यह अपराध माना जाएगा. जो व्यक्ति बच्चों का विवाह करवाता है, करता है या किसी भी रूप में बाल विवाह में सहायता करता है, या कोई व्यक्ति जो बाल विवाह को बढ़ावा देता है या प्रोत्साहित करता है, उसे 2 साल की अजा और 1 लाख रूपए का जुर्माना हो सकता है. बाल विवाह करने, करवाने या उसमें तीनों स्तर पर सजा का प्रावधान है. तो क्या हम यह मान सकते हैं कि सजा के डर से बाल विवाह होने बंद हो गए हैं ? बिलकुल नहीं, क्योंकि बाल विवाह के मामलों में जुर्म तय करने और सजा दिए जाने के मामले भी बहुत कम है. उल्टे बाल विवाह रोके जाने पर शासकीय कर्मचारियों के साथ अपराध के मामले जरूर सामने आए हैं.
मध्यप्रदेश का राजगढ़ जिला बाल विवाह के मामले में बदनाम है. एक साल पहले जब अक्षय तृतीया के मौके पर इस जिले में घूम रहा था कुछ दिलचस्प बातें पता चली थी. पहली यह कि बाल विवाह करवाने के बाद जो परिवार मंदिर में वर—वधु को दर्शन करवाने के लिए लाते थे, उन्होंने मंदिर में आना बंद कर दिया. जो शादियां दिन में की जाती थीं, उनको रात में करवाना शुरू कर दिया, ताकि उनकी निगरानी न हो सके, ज्यादातर शादियां राजस्थान सीमा से लगे गांवों में अपने रिश्तेदारों के यहां की जाने लगी, जहां से सूचनाओं का पता न लग सके. तो समाज जागरुक तो हो गया, लेकिन इसके लिए नहीं कि बाल विवाह नहीं होना चाहिए, बल्कि इसलिए कि बाल विवाह कैसे चुपके से, सरकार की नजर से बचकर करवा दिया जाए. ऐसी परिस्थितियों में कोई कानून, योजना, जागरुकता कार्यक्रम प्रभाव पैदा भी करे तो कैसे. लेकिन उससे गंभीर बात यह है कि यदि सरकार भी इन आंकड़ों को सही मानने लग जाएगी, उन आंकड़ों की जांच नहीं करवाएगी, तो फिर यह बीमारी अंदर ही अंदर पनपती रहेगी. लोग ऐसे ही चुपके—चुपके बाल विवाह करवाते रहेंगे और जब 2021 की जनगणना के आंकड़े सामने आएंगे तो पता चलेगा कि दो करोड़ लोग तय उम्र से पहले ही ब्याह दिए गए.
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