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भाग 2 - गांधीजी पर अहिंसा छोड़ने का बनाया दबाव





दोनों स्थितियों को देखने से यह बात तो समझ में आती है कि अंततः दोनों ही हि‍ंसक तरीकों से अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के माध्यम हैं। अतः यह स्वाभाविक तौर पर आवश्यक हो जाता है कि समाज में व्याप्त इस हिंसक आक्रामकता के कारणों की पड़ताल की जाए।
यहां हमें यह भी समझ लेना आवश्यक है कि बीसवीं शताब्दी का पूरा कलेवर इस तरह का रहा है जिसमें कोई एक राष्ट्र अपनी भौगोलिक सीमाओं के बावजूद वैश्विक राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक घटनाओं या उलटफेर से अप्रभावित नहीं रह पाया। लेकिन भारत की स्थिति विश्व में सबसे अलग थी, क्योंकि यहां सन् 1915 में महात्मा गांधी के आगमन के साथ ही स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा का प्रवेश एक हथियार की तरह नहीं एक औजार या उपकरण की तरह से हुआ था। 
यहां यह स्पष्ट कर देना जरुरी है कि यह लेख भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की विभिन्न धाराओं को लेकर कोई टिप्पणी नहीं है परंतु गांधी से संबंधित कुछ बातों पर विचार करना हमारे शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना के साथ ही साथ यह स्पष्टता लाने में सहायक होगा कि गांधी एक निश्चित विचार की परिपक्वता के बाद ही भारत लौटे थे और यहां उन्‍होंने अपने मूल विचार अहिंसा को लेकर महत्वपूर्ण व फलदायी प्रयोग किए थे। 
गांधी जी भारत वापसी के पहले लंदन में प्रख्यात क्रांतिकारी मदनलाल धींगरा पर मुकदमा शुरु हो गया था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्‍होंने कहा था, जो सोचते हैं कि धींगरा के इस कृत्य या ऐसे ही कार्यों से भारत को लाभ हो रहा है, वे गंभीर गलती कर रहे हैं। 
धींगरा देशभक्त था और उसका प्रेम दिशाहीन था। उसने अपना शरीर गलत तरीके से उत्सर्ग किया और इसका नतीजा बुरा ही हो सकता है।इसी दौरान वहीं उनकी मुलाकात सशस्त्र क्रांति के समर्थकों श्यामजी कृष्ण वर्मा एवं विनायक दामोदर सावरकर से हुई, जिन्होंने गांधीजी पर अहिंसा का रास्ता छोड़ने का दबाव बनाया था वहीं दूसरी ओर गांधी ने उनसे सशस्त्र संघर्ष का रास्ता छोड़ने को कहा। 
जाहिर है दोनों एक दूसरे से सहमत नहीं हुए थे, लेकिन गांधी का स्पष्ट मत था कि हिंसात्मक पद्धति से उपनिवेशवादियां पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। उनके अनुसार उपनिवेश की जड़ में आधुनिक सभ्यता का वास है। तभी तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था, हिंसात्मक तरीकों का अर्थ होगा आधुनिक सभ्यता का स्वीकार।
उन्‍होंनेएक बार कहा था यदि भारत ने हिंसा को अपना धर्म स्वीकार किया और यदि उस समय र्मैं जिंदा रहा तो मैं भारत में नहीं रहूंगा। तब वह मेरे मन में गर्व की भावना उत्पन्न नहीं करेगा। मेरा देशप्रेम मेरे धर्म द्वारा नियंत्रित है। 

 उन्होने यह भी घोषित किया था कि मेरा धर्म भौगोलिक सीमाओं में मर्यादित नहीं है। यदि उसमें (धर्म में) मेरा जीवंत विश्वास है तो मेरे भारत प्रेम का अतिक्रमण कर जाएगा।दुनिया के बिरले ही व्यक्तित्वों में स्वयं पर और अपने विचार पर इतनी दृढ़ आस्था देखी गई है। जैसा कि हम जानते हैं कि गांधी सन् 1915 में भारत लौटे और लंबे चिंतन व भ्रमण के पश्चात उन्‍होंने फरवरी 1922 में असहयोग आंदोलन शुरु किया। 

इस दौरान चैरी-चैरा में हुई हिंसक घटनाओं में पुलिसकर्मियों के मारे जाने के बाद उन्‍होंने यह कहते हुए कि मेरे द्वारा जिस तरह से आजादी चाही गई है उसके लिए शायद यह देश अभी तैयार नहीं है, उन्‍होंने चरम पर पहुंचा वह आंदोलन वापस ले लिया। उस समय सभी लोग स्तब्ध रह गए थे क्योंकि हर एक को लग रहा था कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद अब अंतिम सांस ले रहा है।
- जारी                                                     साभार- चि‍न्‍मय मि‍श्र

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