राकेश कुमार मालवीय
किस्सा
यह है कि नर्मदा और सोनभद्र दोनों एक ही इलाके के हैं। दोनों का बचपन साथ—साथ
गुजरा। दोनों में प्रेम हुआ, लेकिन फिर उनके बीच कोई तीसरा आ गया। सोनभद्र जुहिला के
प्रेम में पड़ गया। नर्मदा ने समझाने की कोशिश की, पर सोनभद्र नहीं माना। नर्मदा ने
प्रण किया कि वह कभी विवाह नहीं करेगी। नाराज नर्मदा दूसरी ओर चल पड़ी। इसीलिए वह अन्य
नदियों से उल्टी दिशा में बहती है।
क्या
कोई नाराज होकर भी इतना सुंदर—समृदध हो सकता है, जितनी की नर्मदा ! जब यह नदी
आज सदियों बाद भी इस दौर में भी इतनी सुंदरता को समेटे है, यदि रेवा के मन का हुआ होता
तो क्या होता ? नर्मदा जिसने दस हजार सालों की तपस्या करके इतनी क्षमता प्राप्त की
कि वह औरों को समृदध कर सके। ऐसी क्षमता हासिल की जो न किसी अन्य नदी के पास थी न किसी
और तीर्थ के पास। ऐसा दिव्य आशीष की नर्मदा का हर कंकर—कंकर भी शंकर हो उठे। जिसके
दर्शन मात्र से वह पुण्य हासिल हो, जिसे करने के लिए अनेक जतन करने पड़ते हों। अपनी
संतानों के साथ ऐसा अदभुत जुड़ाव जो जन्म से शुरू होकर मृत्यु तक हर सुख—दुख
में उपलब्धि में, प्रार्थना में, संकट में अनवरत चलता है। वह रिश्ता एक नदी और मनुष्य
से कहीं बढ़कर होता है।
भले
ही न्यायालयों में उसे जीवंत मानने की कवायद की गई हों, लेकिन वह तो है ही ऐसी कि इसे
किसी न्यायालय के ठप्पे की जरूरत नहीं है। नदी में पानी ज्यादा आने से बाढ़ आना नहीं
कहा जाता, बल्कि माई मोटली हो जाती है या सूज जाती है। यह दुनिया की एक अकेली नदी
है जिसकी सदियों से परिक्रमा करने का रिवाज है। तकरीबन 2600 किलोमीटर का परिक्रमा पथ
है, और ऐसा अदभुत ताना बाना है कि परिक्रमावासी खाली हाथ भी घर से निकले तो भी वह भूखे
पेट कहीं नहीं रहेगा।
क्या
नर्मदा को शिव के दिए महाप्रलय में भी खत्म न होने के वरदान का असर खत्म हो गया है।
क्या यह वक्त देश की तीसरी सबसे लंबी नदी नदी की हत्या की शुरुआत का साक्षी बन रहा
है। एक शाम जब नर्मदा के पुनासा पुल से गुजरना हुआ तो धुंधलके में एक ओर इंदिरा सागर
बांध पर तीन रंगों में जगमग रोशनी थी, लेकिन ठीक दूसरी तरफ एक ऐसा दृश्य दिखाई देता
है, जैसे किसी ने नर्मदा के सौंदर्य को छीन लिया, उसका श्रंगार उतार दिया है। नर्मदायात्री
चित्रकार अमृतलाल वेगड़ ने लिखा है ‘प्रवाह नदी का प्रयोजन है, नदी अगर बहेगी नहीं
तो वह नदी नहीं रहेगी। अपने अस्तित्व के लिए उसे बहना ही चाहिए।‘
सदियों
से बहती नदी थम गई है। नर्मदा को घूम- घूम कर देखने वाले वेगड़ ने लिखा ‘मेरी नर्मदा
अब वैसी नहीं रही जैसी सदियों से थी।‘
नर्मदा
को बड़े—बड़े
जलाशयों में तब्दील कर दिया गया है। विकास ने उसके हाथ—पैर बांध दिए हैं। आज ही
अखबार में खबर छपी है कि रेवा का पानी इतिहास के अब तक के सबसे बुरे दौर में पहुंच
गया है। नर्मदा जयंती पर बांध से थोड़ा—थोड़ा पानी छोड़ा जा रहा है ताकि पानी बहे और साफ
हो सके। दूसरी खबर है कि उसके किनारे रौपे गए लाखों पौधों का अता—पता
नहीं है।
रात
दिन सड़कों पर दौड़ते बिना नंबरों के डम्पर यह जानने के लिए काफी हैं कि उसके शरीर के
हर अंग को मशीनों से बुरी तरह छलनी किया जा रहा है। फिर भी मध्य प्रदेश की जीवन रेखा
से भारी अपेक्षाएं हैं वह भोपाल को भी पानी पिलाएगी, इंदौर को भी और सिंहस्थ में करोड़ों
लोगों के स्नान के लिए रीत चुकी क्षिप्रा को भी पानी देगी, यह पूरा हो जाने के बाद
भी चालीस—पचास
सालों ने उसके साथ ऐसा सुलूक किया है जो सभ्यता ने आज तक नहीं किया।
अभी
हमने चमोली में ग्लेशियर फटने से नदी की तबाही का भयावह मंजर देखा था। यह इस बात का
संकेत है कि हमने अपने प्राकृतिक संसाधनों के साथ कैसा सुलूक किया है। अजीब बात है
कि हम उनकी पूजा भी करते हैं ओर उनको उसी तरह विनाश के रास्ते पर भी ले जाते हैं। जब
पिछले कई दशकों से अमेरिका जैसे देश में नदियों पर बांध बनाना रोक दिया गया, बने हुए
बांधों को तोड़ दिया गया उसी समय में हमारे यहां नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर तीस
बड़े, तीन सौ मध्यम बांध और 3200 से ज्यादा छोटे बांध बनाने की योजना बनाई गई। इससे
लाखों लोग विस्थापित हुए, जंगल डूबे, जमीन डूबी, वह सब तो एक अलग विषय है !
नर्मदा
किसी ग्लेशियर से नहीं निकलती उसका जीवन उसके आसपास की नदियों, वनस्पतियों से है जो
उसे पानीदार बनाते हैं, उसका बेसिन जितना सेहतमंद होगा नर्मदा भी उतनी सुखी होगी, पर
संकट तो उन सहायक नदियों पर भी है, वह भी पानी के मामले में पिछले सौ सालों की सबसे
कम गरीबी झेल रही हैं, संकट और भी बड़ा है, वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीटयूट ने नर्मदा बेसिन
कि दुनिया के छ सबसे संकटग्रस्त बेसिन में शुमार किया है. इस तरह के कई और शोध हमारे
सामने आते रहे हैं जो हमें चेतावनी देते हैं. पर क्या यह दृश्य देखकर नर्मदा स्वयं
भी प्रसन्न होगी ? क्या हमें उसके जन्मदिन पर उसे जीवन का उपहार नहीं देना चाहिए। क्या
उसके संरक्षण की ईमानदार कोशिशें नहीं करनी चाहिए। क्या हमें अपनी पीढ़ियों को दिखाने
के लिए नर्मदा का अलौकिक सौंदर्य नहीं बचाए रखना चाहिए।
क्या
यह वक्त एक जीवित् नदी का गुनहगार हुआ जा रहा है ?
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