मम्मी को अपना दांत ठीक करवाना था तो
हौम्योपैथी फिजिशियन डॉक्टर ढिमोले के परामर्श पर हम लोग अशोका गार्डन के
विवेकानंद चौराहा स्थित मोहिनी काम्प्लेक्स के डेंट ओ केयर क्लिनिक गए। यहां पर
मेरी भांजी ने मम्मी के साथ शुक्रवार की दोपहर में चेकअप करवाकर कंसल्ट किया।
मम्मी के साथ शाम को हम यहां पर पहुंचे और डॉक्टर के कहे अनुसार एक दांत निकलवाकर
नए दांत लगवाने के लिए जरूरी प्रक्रिया पूरी की। इसके बाद हमें अगले दिन शाम को
आने के लिए कहा गया। शाम को जब हम डॉक्टर के दिए गए समय पर पहुंचे तो हमें बैठने
के लिए कहा गया। डॉक्टर के यहां काम करने वाले अटेंडेंट ने बताया कि आज लाइट नहीं
थी इसलिए आपके दांत नहीं बन पाए।
मेरे मन में सवाल आया कि भोपाल का ऐसा कौनसा
इलाका है जहां कि दिनभर लाइट नहीं रही। और दांत बनाने वाली एजेंसी के यहां बैकअप
तो रहता होगा कम से कम, ताकि काम
प्रभावित न हो। कुछ देर बाद मैंने अंदर जाकर डॉ जैन से सवाल पूछा कि क्या बात है,
तो उन्होंने बताया कि बनते समय टूट गए,
तो दोबारा बन रहा है। उबल रहा है। मम्मी को सुबह ही गांव जाना
था तो वह जल्दी ही यह काम करवाना चाहती थी। डॉक्टर ने अगले दिन हमें ग्यारह बजे
आने के लिए कहा। मम्मी ने कहा कि ठीक है रूककर ही चले जाएंगे। दूसरे दिन मैंने
सुबह डॉक्टर के फोन नंबर 9685748838 पर कॉल करके पूछा कि हम आ जाएं क्या,
हमारा काम हो गया है।
डॉक्टर ने 15 मिनट में आने के लिए कहा।
हम रविवार को सुबह यहां पहुंचे। उस वक्त भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार केसवानी
वहां बैठे मिले। वह डॉक्टर से परामर्श ले रहे थे। डॉक्टर से जाकर मम्मी के बारे
में पूछा तो उन्होंने कहा कि अभी वक्त लगेगा, आप
आधा घंटे बाद आ सकते हैं क्या। हमने कहा कि दूर रहते हैं,
बार—बार आना—जाना
संभव नहीं है। इस पर उन्होंने इंतजार करने के लिए कहा। जब घंटे भर बाद उनसे दोबारा
पूछा तो उन्होंने बताया कि आपका ही काम लैब में चल रहा है। लगभग आधा घंटे के और
इंतजार के बाद उन्होंने मम्मी को दोबारा अंदर बुलाया और दोबारा माउथ प्रिंट लेने
लगे। इस पर मैंने उनसे कुछ सवाल कर दिए। उन्होंने कहा कि वह घंटे भर में बनाकर दे
देंगे। मैंने कहा तब तो आप अब तक लगातार झूठ ही बोल रहे थे क्या। यह पुअर सर्विस
है।
मुझे यह समझ में आया कि हमसे लगातार झूठ पर झूठ बोला जा रहा था,
और भ्रामक जानकारी दी जा रही थी। मुझे खीज नहीं आती यदि वह सही
बात बता देते। इसके बाद उन्होंने कहा कि आप चाहें तो अपने पैसे वापस ले सकते हैं।
मैंने उनसे कहा कि आपकी पुअर सर्विस है तो वह उखड़ गए और बदतमीजी पर उतर आए।
उन्होंने बताया कि वह अशोका गार्डन के सबसे बेहतरीन डॉक्टर हैं। इसलिए उनके यहां
इतनी भीड़ है। मैंने कहा कि तभी तो आपकी सर्विस सामने है। आप लगातार हमें सही बात
नहीं बता रहे हैं। भ्रामक जानकारियां दे रहे हैं। आपका अटेंडेंट कुछ बोलता है आप
कुछ बोलते हैं। हमें इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि अगले एक घंटे में भी वह हमें
दांत बनाकर दे देंगे। हमने अपने पैसे वापस लिए। इसपर वह बदतमीजी पर उतर आए। उनका
पर्चा छीनकर रख लिया। मेरे साथ मम्मी थीं इसलिए मैंने घर जाना ही उचित समझा,
वरना उसे दिखाता।
कल
शाम ही तो स्वराज भवन में डॉक्टर अजय खरे की स्मृति में व्याख्यान में शामिल हुआ
था। मेडिकल एथिक्स पर काम करने वाले डॉक्टर अमितसेन गुप्ता ने यहां पर डॉक्टर की
तुलना जल्लाद से की थी। उन्होंने बताया था कि जल्लाद नाजुक वक्त पर लोगों का फायदा
उठाने वाली कौम है। ऐसे ही डॉक्टर भी हो गए हैं। एक व्यक्ति डॉक्टर के पास तब
पहुंचता है जब उसका सबसे नाजुक हाल होता है। इस स्थिति में यदि डॉक्टर लाभ और
मुनाफा कमाने की नीयत से उनका फायदा उठाता है तो वह जल्लाद ही है। इसका यह मतलब
नहीं कि सब ऐसे हैं। रायपुर के जिस घर में मैं तीन साल तक रहा वहां तीन—तीन
डेंटिस्ट थे। सही मायने में केयरिंग। सर्दी—खांसी
से लेकर चोट लगने या हर नाजुक वक्त में एक पराए शहर में उनका आसरा हर बखत मिला। आज
भी व्हाट एप्प पर वह जरूरी सलाह दे देते हैं। केवल मेरे साथ ही नहीं उनका हर
पेशेंट के साथ ऐसा ही
व्यवहार है।
पर दरअसल तो बात वही है, जिसकी ओर सर्वोदय प्रेस सर्विस के संपादक चिन्मय मिश्र ने कल इशारा कर कहा। व्यापमं घोटाले के बाद जिस तरह की तस्वीर आई है वह उससे जाकर जुड़ता है। केवल प्राइवेट ही नहीं सरकारी मेडिकल शिक्षा व्यवस्था का जब इस तरह का कारोबार है तब आगे किस तरह की परिस्थितियां बनेंगी वह सोचा जा सकता है। क्योंकि मेडिकल एजुकेशन भी मुनाफे पर आधारित है। डेंट ओ केयर के यह महाशय भी ऐसी ही किसी शिक्षा व्यवस्था से निकले हैं, जहां इनकी नैतिकताएं, इथिक्स के कोई मायने नहीं हैं। मुझे इंतजार से कोई चिढ़ नहीं है, कभी—कभार हमें करना पड़ता है, लेकिन हां, झूठ से जरूर चिढ़ आती है, उसे सहन नहीं कर पाता। झूठ भी ऐसा जो लगातार पकड़ा जा रहा हो। यहां भी ऐसा ही हुआ।
असल में तो यह दौर ही ऐसा है,
जिसकी ओर कल के व्याख्यान में बात आई। वह यह कि डॉक्टर मरीज
को कुछ बताना उचित ही नहीं समझते। लेकिन फिर वही बात कि हम जिसे अपना शरीर सौंपते
हैं, एक तरह से अपने पूरे शरीर के साथ
इलाज करने का विशेषाधिकार उसे सौंपते हैं, तब
डॉक्टर की नैतिकता भी इस विशेषाधिकार के बरअक्स और बढ़ जाती है। हम सरकारी अस्पताल
की लंबी लाइन, डॉक्टरों
की अनुपब्लधता और गंदगी से बचने और शायद कथित तौर पर अच्छे इलाज के लिए इन
प्राइवेट क्लीनिकों, अस्पतालों
की ओर जाते हैं, लेकिन
अनुभव बताते हैं कि शायद ऐसा नहीं है। बस ये है कि हम इनके खिलाफ वैसे आसानी से
नहीं लिख पाते जैसा कि हमीदिया या जेपी की खबर।
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