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एक भारतीय आत्मा और हिरनखेड़ा

एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी का रिश्ता हमारे गांव हिरनखेड़ा से भी रहा। उन्होंने यहां एक स्कूल की स्थापना की और कई सालों तक संचालित भी किया। यह स्कूल आजादी की गतिविधियों के गुप्त केन्द्र के रूप में भी काम करता था। कई क्रांतिकारी यहां गिरफतारी से बचने के लिए छुपते भी थे, क्योंकि यहां से सतपुड़ा अधिक दूर नहीं है और यहां अच्छा खासा जंगल भी हुआ करता था। उनकी कई कविताएं हिरनखेड़ा में रची गईं। अफसोस है कि इस स्थान पर न कोई स्मारक है न कोई और गतिविधि। कुछ साल पहले तक हम मित्रों का समूह हर बार जन्मदिन पर कोई संगोष्ठी या कार्यक्रम जरूर करते थे। अब तो सारे मित्र अपने काम धंधों में यहां—वहां भटक रहे हैं। हां दादा के नाम पर यहां हाई स्कूल जरूर चलता है, जो अब हायर सेकंडरी हो गया है। दादा को सीधे जानने देखने वाले हमारे बुजुर्ग भी अब गांव में नहीं रहे। अब तो कुछ स्मृतियां ही शेष हैं। उम्मीद है भविष्य में हम कभी इस अनूठी विरासत को सहेजेंगे। 

एक भारतीय आत्मा को नमन ! 

आज भास्कर की खास स्टोरी जिसमें हिरनखेड़ा का जिक्र भी है।

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