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मध्यप्रदेश की राजधानी में टॉप पर टीबी


  • एक साल में टीबी के कारण 163 लोगों की मौत
  • मध्यप्रदेश में युवाओं का सबसे ज्यादा शिकार कर रही टीबी
राकेश कुमार मालवीय, भोपाल

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टी बी से पीड़ित एक महिला 
मध्यप्रदेश की राजधानी टीबी की राजधानी में तब्दील हो रही है। टीबी से हुई मौतों के मामले में भोपाल प्रदेश  के सभी जिलों में सबसे आगे है। नेशनल हैल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर की रिपोर्ट में बताया गया है कि भोपाल जिले में टीबी के कारण सबसे ज्यादा 163 मौतें दर्ज की गई हैं. पूरे प्रदेश में इस दौरान  कुल 1 हजार 222 बच्चों की मौत हुई है। दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश के पांच जिलों सीहोर, सागर, अनूपपुर, भिंड, खंडवा, सिंगरौली में एक भी मौत इस दौरान नहीं हुई है।  
मध्यप्रदेश  में 15 साल से 55 साल तक के लोग टीबी से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। नेशनल  हैल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर की वेबसाइट पर जारी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।  अप्रैल 2010 से लेकर मार्च 2011 तक मध्यप्रदेश  में 1 हजार 222 लोगों की मृत्यु टीबी के कारण हुई थी। इसमें 15 साल से 55 साल तक के सबसे ज्यादा 643 लोग शामिल थे। इसके बाद 55 साल से अधिक उम्र वाले 498 लोगों की की मौत टीबी के कारण हुई। बच्चे भी टीबी से अछूते नहीं हैं। इस दौरान 81 बच्चों की मौत टीबी के कारण दर्ज हुई है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मध्यप्रदेश की राजधानी टीबी भी इस संख्या में सबसे आगे हैं।  गौरतलब है कि भोपाल उन सात जिलों में शामिल है जहाँ कि टी बी अस्पताल खोले गए हैं. 

एनआरसी में बच्चों की नहीं होती टीबी की  जांच : 

पोहरी स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र 
मध्यप्रदेश  में साठ प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। गंभीर कुपोषित बच्चों की देखरेख के लिए प्रदेश में 264 पोषण पुनर्वास केन्द्र स्थापित किए गए हैं। गंभीर बच्चे किसी भी तरह के संक्रमण के प्रति ज्यादा संवेदनशील  होते हैं। टीबी भी एक संक्रामक बीमारी है, इस दृष्टि से पोषण पुनर्वास केन्द्र में आने वाले बच्चों की टीबी की भी जांच होना जरूरी है। लेकिन प्रदेश के पोषण पुनर्वास केन्द्रों में टीबी की जांच नहीं हो रही है। शिवपुरी जिले के पोहरी ब्लोक  स्थित पोषण पुनर्वास केन्द्र की प्रभारी आरती मेहरा बताती हैं कि यहां पर बच्चों के टीबी की जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। इस केन्द्र में पर्याप्त स्टाफ नहीं होने के कारण साफ-सफाई का भी अभाव है। ज्यादा बच्चे आने के कारण कई बार एक पलंग पर दो बच्चों को भी रखना पड़ता है। ऐसी स्थिति में बच्चे जल्दी ही किसी भी तरह के संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं। सतना जिले के पोषण पुनर्वास केन्द्र में भी माॅटयूस टेस्ट की व्यवस्था नहीं होने से टीबी की जांच नहीं हो पा रही है।     

टोने-टोटके में ज्यादा भरोसा : 
हीरालाल सहरिया के घर के दरवाजे पर टीबी के प्रकोप
को दूर रखने के लिए लाल कपडे में टोटका किया गया है
टीबी को दूर करने में सबसे बड़ी मुश्किल टोने-टोटके की भी है। लोग खांसी होने पर या मुंह से खून आने पर इसे दैवीय प्रकोप मानते हैं और लंबे समय तक गुनिया-ओझाओं से इसका इलाज कराते हैं। सतना जिले में दुरेहा गांव की आशा कार्यकर्ता बताती हैं कि उनके गांव में भयंकर टीबी का प्रकोप है, लेकिन लोग जानते हुए भी पहले इसे झड़वाने-फुंकवाने में लग जाते हैं। तब तक यह और भयंकर रूप ले लेती है। इसी तरह शिवपुरी  जिले में टीबी से जूझ रहे हीरालाल सहरिया ने तो अपने पूरे घर की ही झाडफूंक करवा रखी है। उनके घर के दरवाजे पर लटका लाल धागा इसकी गवाही देता नजर आता है। टीबी को दूर करने के लिए दी जा रही डाॅट्स दवाओं के लिए सबसे अहम बात यह है कि इन्हें निरंतर और पूरे कोर्स के साथ लिया जाना चाहिए। लेकिन लोगों की अपेक्षा होती है कि वह दवाई खाकर तुरंत ठीक हो जाएं। कई बार आराम मिल जाने की स्थिति में लोग पूरी दवाएं नहीं खाते और कई बार आराम नहीं मिलने के कारण भी छोड़ देते हैं। 
राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम :
 टीबी को काबू में करने के लिए देष में राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम 1962 में लागू किया गया। इसके अंतर्गत क्षय, केन्द्र, टीबी क्लीनिक और अस्पताल शुरू किए गए। 1992  में इसे दोबारा शुरू करके पुनरीक्षित क्षय नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया। इसमें सभी खोजे गए मरीजों का पंजीयन करके उनकी डोट्स पदधति से स्वस्थ होने तक की व्यवस्था की गई। मध्यप्रदेश में टीबी की स्थिति बहुत भयानक है। तमाम प्रयासों के बावजूद यहां टीबी से मौतों का आंकड़ा थम नहीं रहा है। यह एड्स से भी पुरानी और घातक बीमारी है, बावजूद इसके टीबी सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। 

टी बी से मौत के मामले में पांच अग्रणी जिले 
 जिला 
6-14 साल 
15-55 साल 
55 से ज्यादा 
कुल 
भोपाल 
38
78
47
163
मुरेना 
2
19
50
71
दमोह 
2
46
20
68
उज्जैन 
5
31
29
65
      सिवनी
-
43
18
61
 मध्य प्रदेश  
¼कुल ½
81
643
498
1222
 भारत 
1030
7381
5333
13741

                               नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर भारत सरकार की वेबसईट के मुताबिक 




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