बाजार तो बहाना है, पत्रकारिता का स्तर खुद पत्रकारों ने ज्यादा खराब किया है। मीडिया की यदि दस वर्षों में ज्यादा आलोचना हुई है तो समाज ज्यादा लोकतांत्रिक हुआ है। पहले के दौर में ज्यादा प्रतिस्पर्धा नहीं थी, लेकिन अब स्थिति बदल गई है और मीडिया ने महानता का जो मिथ स्वयं गढ़ा था, वह अब धीरे-धीरे दरक रहा है। यह विचार वरिष्ठ टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने व्यक्ति किए। वह भोपाल में विकास संवाद की ओर से आयोजित मीडिया मानक और समाज विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
रवीश कुमार ने मीडिया की स्थिति पर कहा कि अब मीडियम तो बदल रहे हैं, उन्हें पेश करने वाले लोग बदल रहे हैं, पर खबरें नहीं बदल रहीं। उन्होंने कहा कि ऐसा आरोप लगाया जाता है कि बाजार के दबाव के कारण पत्रकारिता का स्तर गिरा है, लेकिन यह बहाना है और पत्रकारिता को बाजार से ज्यादा खुद पत्रकारों ने कुंद किया है। जो दलाल हैं वह बाजार की आड़ में दलाली करते हैं।
संगोष्ठी में अरविंद मोहन ने कहा पत्रकारों की अलग दुनिया है और यह तटस्थ है। इसकी पश्चिम के समाजों से भी ज्यादा इज्जत रही है। इसकी अलग दृष्टि रही है इसलिए समाज अब तक इसका ज्यादा आदर करता रहा है। उन्होंने कहा बदलाव मीडिया मालिकों के बदलने के कारण नहीं बल्कि मीडिया के अपने चरित्र बदलने के कारण होता है। उन्होंने चिंता जताई कि अब मीडिया के मूल्यों में बदलाव हो रहा है। उन्होंने चुनावों के समय पेड न्यूज के चलन पर भी चिंता जताई और कहा कि इसकी निगरानी सरकार या कोई और संस्था नहीं बल्कि मीडिया को खुद ही करना होगा। लेखिका रजनी बख्शी ने कहा कि निष्पक्ष कोई नहीं होता, सबके मूलाधार होते हैं। अब यह आपके हाथ में है कि युधिष्ठर की तरफ खड़े हों या दुर्योधन की तरफ। उन्होंने कहा कि हर सूचना की एक पॉलिटिक्स होती है और इसे समझने की जरूरत हैं उन्होंने चिंता जताई कि पेड न्यूज लोकतंत्र की हत्या करने का माध्यम है। लज्जाशंकर हरदेनिया ने कहा कि हमें इस दौर में तय करना होगा कि सरकार के बिना समाज की कल्पना करना है कि अखबार के बिना। गोष्ठी में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन पुष्पेन्द्रपाल सिंह ने किया।
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