मध्यप्रदेश सरकार वह बलात्कारियों की सजा में किसी भी तरह की कोई रियायत देने के पक्ष में नहीं है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आजीवन कारावास से दंडित बंदियों की रिहाई की अवधि की प्रस्तावित नीति -2022 पर चर्चा से यह स्वर उभर कर आ रहा है। वर्तमान में प्रदेश में वर्ष 2012 की नीति लागू है। नयी नीति पर यह चर्चा महत्वपूर्ण इसलिए हो जाती है क्योंकि पिछले दिनों बिलकिस बानो मामले में गुजरात सरकार ने जेल काट रहे आरोपियों को सजा में राहत देते हुए शेष सजा माफ़ कर दी गयी थी, यह बलात्कार का जघन्य मामला था, जेल से छूटने के बाद इन दोषियों का जिस तरह से भव्य स्वागत-सत्कार हुआ उससे समाज के एक तबके में रोष नजर आया था. ऐसे में मध्यप्रदेश सरकार इस नीति पर मुहर लगाती है तो समाज में एक अच्छा सन्देश जाएगा.
मध्यप्रदेश में
आजीवन कारावास की सजा प्राप्त बंदियों के संबंध में जो नई नीति तैयार की गई है, उसमें जघन्य अपराधियों को कोई राहत नहीं मिलेगी। इस
पर मुहर लगती है तो नाबालिगों से बलात्कार के अपराधियों का कारावास 14 वर्ष में समाप्त नहीं होगा। मध्यप्रदेश में ऐसे
अपराधियों को अंतिम साँस तक कारावास में ही रहने की नीति बनाई गई है। इसमें कुछ और
अपराधों को भी जोड़ा गया है. इसमें आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाए गए दोषी, गैंगरेप, जहरीली शराब
बनाने, विदेशी मुद्रा से जुड़े
अपराधों, दो या दो से अधिक प्रकरण
में हत्या के दोषी शामिल हैं. शासकीय सेवकों
की सेवा के दौरान हत्या का अपराध, राज्य के
विरुद्ध अपराध और सेना के किसी भी अंग से संबंधित अपराध करने वाले अपराधियों पर भी
कोई रहम नहीं किया जाएगा. इन सभी के लिए नई नीति लागू नहीं होगी। इन अपराधों में
आजीवन कारावास से दंडित बंदियों को अब जेल में ही अंतिम सांस तक रहना होगा। आपको
बता दें कि प्रदेश के 131 जेलों में 12 हजार से अधिक बंदी आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। राज्य की जेलों
में कुल 28718 कैदियों को रखने की क्षमता है, जबकि तकरीबन 44 हजार कैदी वर्तमान
में बंद हैं.
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध का असर
मध्यप्रदेश वह राज्य है जहाँ कि महिलाओं के साथ
अपराधों की संख्या बढ़ी है. मध्यप्रदेश में ही नाबालिग बच्चियों से बलात्कार के
मामले में मृत्युदंड का सबसे पहले प्रावधान किया गया था. इससे पहले महिलाओं और बच्चियों से साथ प्रदेश में अपराध के भयावह आंकड़े सामने
आ रहे थे. इस नजरिये से इस सजा के प्रावधान ने एक उम्मीद जगाई थी कि अब अपराधों
में आमूलचूल कमी आएगी, हालाँकि इस मामले एक तबके का यह भी मानना था कि बिना
शिक्षा, संस्कार और मूल्यों के केवल सजा से ऐसे मामलों का कम होना संभव नहीं है.
इस बार भी बेहतर नहीं हो
पाए आंकड़े
साल 2021 की नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट आई तो एक बार
फिर समाज सच्चाई सामने आई. इस साल मध्यप्रदेश में 304066 केस दर्ज किए गए हैं, इनमें 10 फ़ीसदी मामले महिलाओं के
साथ अपराध से संबंधित हैं. यदि संख्याओं के नजरिए से देखें तो महिलाओं के खिलाफ 30673 मामले दर्ज किए गए.
महिलाओं के खिलाफ अपराध में पिछले साल की तुलना में 5036 केस की बढ़ोतरी दर्ज हुई.
6459 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए हैं जो कि देश में दूसरे
नंबर पर हैं, इस सूची में राजस्थान पहले नंबर पर है जहां कि बलात्कार के 6917 मामले दर्ज किए गए. रेप
और गैंगरेप के बाद हत्या के केस में मध्यप्रदेश देश भर में तीसरे नंबर पर आया. 1 साल में प्रदेश में 35 ऐसे केस दर्ज किए गए हैं
जिसमें पीड़िता के साथ रेप करने के बाद उसकी हत्या की गई है. इससे ऊपर उत्तरप्रदेश
था जो 48 केस के साथ देश
में पहले स्थान पर रहा. मध्यप्रदेश में दहेज के लिए 522 बेटियों की जान इस 1 साल के अंदर गई है. नाबालिग
बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न में मध्यप्रदेश पहले नंबर पर रहा. 1 साल में 3515 बच्चियां यौन उत्पीड़न का
शिकार हुई.
बलात्कार के दोषियों के साथ कोई रियायत नहीं
अपराध का यह
ग्राफ मांग करता है कि इसे थामने के लिए कुछ बुनियादी कदम उठाए जाएँ. समाज में यह
सन्देश जाये कि वह ऐसे मामले में किसी भी हालत में छूट नहीं सकते हैं. मुख्यमंत्री
चौहान ने माना कि बलात्कार के मामलों में किसी भी स्थिति में बंदियों को समय पूर्व
रिहाई का लाभ नहीं मिलना चाहिए। ऐसे अपराधी समाज विरोधी हैं। कारावास में रिहाई का
अर्थ सिर्फ सदव्यवहार और आगे अपराध मुक्त जीवन का संकेत देने वाले अपराधियों पर ही
लागू हो सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जागरूकता अभियान से बलात्कार के मामलों
में कमी लाने के लिए एक कार्य-योजना पर भी अमल किया जाए। मुख्यमंत्री श्री चौहान
ने निर्देश दिए कि कम उम्र की बालिकाओं के साथ यौन अपराध करने वाले अपराधियों को
सख्त से सख्त सजा के मौजूदा प्रावधानों को सख्ती के साथ बनाए रखना आवश्यक है।
क्या अपराधी को
पश्चाताप का अवसर देना चाहिए ?
इस बात पर बहस हो सकती है कि क्या अपराधी को
पश्चाताप का अवसर देते हुए उसके जीवन को दोबारा सँवारने का अवसर देना चाहिए. क्या
क्षमा करना चाहिए. क्षमा को हमारे समाज में विशेष दर्जा भी दिया गया है. मनुष्यता
की बुनावट में यह एक बहुत जरुरी तत्व है, लेकिन बलात्कार का मामला इतना वीभत्स है
कि इसमें कहीं भी कोई रियायत देने के पक्ष में समाज नहीं है. फिलहाल इसे रोकने के
कोई त्वरित उपाय नजर भी नहीं आते हैं, यह एक लम्बी प्रक्रिया का हिस्सा है कि हम
कैसा समाज बनाते हैं, ऐसे में कुछ कड़े उपाय करना जरूरी हो जाता है. गुजरात मामले
में बलात्कार के दोषियों की सजा माफ़ करने का सन्देश ठीक नहीं गया है.
राकेश कुमार मालवीय
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