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एमपी का दशरथ मांझी ‘सुखदेव’, पत्थरों में निकाला पानी

PIC: RAKESH KUMAR MALVIYA
 -    राकेश कुमार मालवीय

वो न शानदार बोलता है, जबर्दस्तजिंदाबाद। सुखदेव किसी के गम मे बावरे भी न हैं। उनका मानसिक संतुलन ​बिलकुल ठीक है। लेकिन उनका हौसला बीवी की ​जुदाई में गमगीन दशरथ मांझी से बिलकुल भी कम नहीं है। वही दशरथ मांझी जिसकी कहानी आप रुपहले परदे पर देख चुके हैं। दशरथ ने पहाड़ तोड़ सड़क निकाल दी, सुखदेव ने बंजर पथरीली जमीन खोद पाताल से पानी निकाल दिया। इस पानी से सुखदेव की जिंदगी लहलहा गयी है। एक और फिल्मी सी लगने वाली कहानी इस बार जमीन पर उतरी है मध्यप्रदेश में। सतना जिले का सुखदेव आदिवासी मध्यप्रदेश का नया दशरथ बन गया है।

सतना जिले का मझगवां ब्लाक यूं तो पिछले सालों में आदिवासी बच्चों की कुपोषण से मौत के मामले में सुर्खियों में रहा है लेकिन यहां पर यही आदिवासी अपने संघर्ष से कामयाबी की मिसाल गढ़ रहे हैं। ब्लॉक मुख्यालय से बिरसिंहपुर जाने वाली सड़क का एक रास्ता सुतीक्ष्ण मुनि के आश्रम की ओर जाता है। कहा जाता है कि यहां पर भगवान राम ने वनवास के दौरान एक रात का वक्त गुजारा था। एक प्राचीन मंदिर और एक कुंड से हमेशा बहती रहने वाली जलधार यहां का वातावरण सुंदर बनाती है, लेकिन कुदरत का यह आशीर्वाद लोगों के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके आसपास के इलाके में पानी की भारी किल्लत है।

इस आश्रम से थोड़ी ही दूर पर बसे ग्राम सिल्हा में सुखदेव रावत (कोल आदिवासी) अपने परिवार के साथ रहते हैं। सुखदेव को कुछ साल पहले जमीन का एक छोटा सा बंजर पथरीला टुकड़ा सरकार ने बंटन में दिया था। यह टुकड़ा कैसा रहा होगा ? इसका अंदाजा लगाने के लिए आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी है। आप सुखदेव के घर के ठीक दूसरी तरफ देख लेंगे तो पता चल जाएगा कि कुछ इंच मिट्टी के बाद पत्थर के अलावा कुछ नहीं है और कुछ पत्थरों के पास तो तन ढंकने को मिट्टी भी नहीं है। यह पत्थर चुनौती देते हैं कि आओ, कुछ कर सको तो कर लो, हम तो पत्थर हैं।

पत्थरों से लड़ना कोई आसान तो नहीं, पर जाने कहां से सुखदेव के मन में यह बात गहरे बैठ गई कि इन्हीं पत्थरों  से बीच से पानी निकालना है। साल 2009 में शुरू हुआ उसका यह मिशन एक दो दिन नहीं चला। पूरे पांच साल लगे, यह अब भी जारी है, पांच साल में करीब 1825 दिन होते हैं, लेकिन एक दिन भी निराशा का भाव मन में नहीं आना, ही तो सुखदेव है। एकएक पत्थर को हथौड़े से हराना आसान नहीं था, लेकिन धीरेधीरे 35 फिट तक पत्थरों को हराने में अपना पसीना बहाता गया यह हाड़ मांस का जुनूनी आदमी। वह भी अपने दम से, गरीबी रेखा के नीचे जीने वाले सुखदेव के पास उसका शरीर ही एकमात्र मशीन थी। लोग उस पर हंसते, पर उसका मन कहता कि ‘एक दिन वह जीतेगा जरूर’। उसके इस जुनून पर हमारा सवाल स्वाभाविक था, “कहां से मिल गई इतनी ताकत ?” उसका जवाब सीधा और सरल ‘अपने मन से। हमारा मन कहता था यहां पर एक दिन पानी जरूर निकलेगा।‘

PIC: RAKESH KUMAR MALVIYA
धीरेधीरे वह अपने सारे हथियार वहां जमा कर लेता हैं। हथियार इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि यह जंग ही तो था, पत्थरों से लड़ना, जो औजारों से नहीं जीती जा सकती। पत्थर पसीनों की बूंदों से भी नहीं पिघलते, श्रम कणों को बेहरमी से भाप बनाकर उड़ा देते हैं और मेहनत का मखौल उड़ाते हैं। उसका हथौड़ा, उसकी कुदाल, उसका सब्बल, उसका फावड़ा भी अब इस जीत के साथ सुखदेव के साथ इतराते से नजर आते हैं। आखिर पाताल बसे पानी को पचास फुट का पत्थर अपने दम पर अकेले जो निकाल दिया। एकएक चोट का निशान पत्थरों पर साफ नजर आता है, विभिन्न आकृतियों में, जैसे कोई कुआं न हो, हो कोई कलाकृति।

पत्थरों को भी महज पत्थर समझकर फेंक न दिया सुखदेव ने। उसे भी सम्मान दिया अपने घर में। जमीन का पत्थर अब जमीन के उपर सुखदेव के परिवार को आसरा देता है। सुखदेव का डुप्लेक्स गजब का है। दो कमरे उपर दो नीचे। रोशनी और अहवा का इंतजाम। वह बताते हैं ‘महसूस कीजिए, ठंड के मौसम में भी घर गरम है और गरमी में यह ठंडाता है। सचमुच, ऐसे ही तो सुखदेव जैसे लोगों ने सदियों से अभावों में जीना नहीं सीख लिया। मिट्टी की दीवारे हैं, लिपीपुती सी। घर के अंदर हाथ से चलने वाली घट्टी  है । घर के बाहर एक और है वह मोटे अनाज के लिए है। बीच में तुलसी क्यारा है, इसमें गेंदे के फूल लगे हैं। घर की दीवारों पर बच्चों के नाम दीवार छाबते वक्त ही उकेर दिए गए हैं स्थायी रूप से, उसमें लड़की का नाम भी है हिना। और हम कहते हैं लड़की पराये घर की होती है। कुछ बच्चों के अंग्रेजी के पहला अक्षर निकालकर शॉर्ट फार्म भी बनाए गए हैं।

इस हाड़तोड़ मेहनत के बाबद सुखदेव और उसके परिवार में क्या बदला। इसका कोई बहुत बड़ा पैमाना नहीं है। है तो केवल हरियाली। कुएं से सटी छोटी सी जमीन पर सात प्रकार के फलों के पौधे पेड़ बनने को आतुर हैं। खाने-पीने की लिए सब्जियां अलग हैं। घर के पीछे अरहर की फसल सर्द मौसम में एक संगीत रच रही है। ऐसा इसलिए हो पाया, क्योंकि अब सुखदेव के पास अपना कुआं है, अपनी मेहनत का पानी है।

(यह न्यूज फीचर खबर एनडीटीवी पर प्रकाशित हुआ है।) 


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