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मॉल बनाम मंडी का लहसुन, क्यों है भारी अंतर ?

 



जिस वक्त मध्यप्रदेश की मंडियों में लहसुन एक रुपए किलो के भाव में बिक रहा था, ठीक उसी वक्त शहर के कई मॉल्स के सब्जी सेक्शन में इस पर साठ से सत्तर रुपए प्रति किलो का भाव टंगा था. कई  वेबसाइट पर लहसुन पेस्ट की कीमत ढाई सौ रुपए नजर आ रही थी, और तफ्तीश करना है तो आप इस लेख पर से नजर हटाकर किसी शापिंग साइट पर हो आएं. फिर कुछ देर सोचें कि देश में सबसे ज्यादा लहसुन हमारे देश में किसान उसकी उपजाई वस्तुओं की शवयात्रा क्यों निकाल रहे हैं ?  

शायद आपको भी सोशल मीडिया पर तैरता एक वीडियो मिल गया होगा, जिसमें एक किसान अपने खून-पसीने से उगाई गयी फसल को पार्वती नदी के पुल से जल में स्वाहा कर रहा है, दिसंबर की भर ठण्ड में मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी मंदसौर मंडी में एक किसान द्वारा पेट्रोल डालकर लहसुन में आग लगा देने की खबर भी मिल जाएगी. खोजेंगे तो सड़क किनारे फेंकने वाले वीडियो भी मिल जायेंगे.

ऐसा केवल लहसुन किसानों के साथ ही तो नहीं हो रहा, कभी टमाटर, कभी प्याज, कभी कुछ और ! हैरानी की बात है भाव गिरने की स्थिति का फायदा आप और हम जैसे उपभोक्ताओं को भी नहीं मिलता ! सालों-साल से उत्पादकों और उपभोक्ताओं की नियति यह है कि उत्पादक कम भाव से परेशान हैं और उपभोक्ता अधिक भाव से, मजे में कोई और है ? वह कौन है ? और इसके बीच में व्यवस्था कहाँ है जिसका दायित्व है कि वह देश को ऐसी परिस्थितियों से बचाए, उपभोक्ताओं को मूल्य की सुरक्षा दे और हर भारतीय नागरिक को पोषण की.  

मध्यप्रदेश कैसे हुआ लहसुन में टॉप पर :

बात लहसुन की करें तो इस वक्त मध्यप्रदेश इस मामले में टॉप पर है. पिछले दस सालों में मध्य प्रदेश राजस्थान को पीछे छोड़ते हुए उत्पादन और बुवाई दोनों में दोगुने से ज्यादा हो गया है. आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 2011-12 में 94945 हेक्टेयर भूमि पर लहसुन लगा था जो 2020-21 में बढ़कर 1,93,066 हो गया. उत्पादन भी 11.50 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 19.83 लाख मीट्रिक टन हो गया. 

मालवा के मंदसौर, नीमच, शाजापुर, उज्जैन, नीमच आदि जिलों में बहुतायत से इनका उत्पादन होता है. सरकार ने एक जिला-एक उत्पाद योजना में मंदसौर जिले को लहसुन के लिए चयनित किया है. मंदसौर मंडी की यह सबसे प्रमुख फसल है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसकी बेहतरीन मार्केटिंग के जरिए देश-विदेश में निर्यात के प्रयास करने, मंदसौर के लहसुन को ब्रांड बनाने और आधुनिक पद्धति से लहसुन प्र-संस्करण कार्य को बढ़ावा देने के निर्देश दे चुके हैं.

लेकिन, इस साल किसानों की हालत ख़राब है. देवास जिले के किसान जगदीश पटेल ने 3 बीघा में लहसुन लगाई थी. एक बीघा पर 25 से 30000 रुपए लागत आई. लहसुन में चार पांच बार दवाई लगती है, हाथ से निंदाई- गुड़ाई से लेकर ग्रेडिंग करवाने तक में लागत बहुत बढ़ जाती है. तीन बीघा में पचास क्विंटल उत्पादन हुआ. लेकिन आज की तारीख में इसका मूल्य है दो से ढाई सौ रुपए क्विंटल, हमारा निंदाई-गुडाई तक का खर्च नहीं निकल पा रहा है. जगदीश ने बताया कि पहले उत्पादन 40 से 45 क्विंटल प्रति एकड़ तक पहुंच जाता था, पिछले दो-तीन  साल से उत्पादन भी कम हो रहा है ! अजीब बात है उत्पादन भी कम हो रहा है और दाम भी कम मिल रहे हैं जबकि मांग और पूर्ति के सिद्धांत में तो उत्पादन/आपूर्ति कम होने पर वस्तु के दाम बढ़ जाते हैं.

भावंतार योजना भी बंद :

शिवराज सरकार के तीसरे कार्यकाल में किसानों के लिए भावान्तर योजना चलाई गई थी. यह किसानों के लिए मूल्य की सुरक्षा देती थी, लेकिन यह योजना अब बंद है और पिछले बार के अनुभव ही अच्छे नहीं हैं. जगदीश पटेल बताते हैं कि पांच साल पहले उन्होंने मंडी में अपनी लहसुन की फसल बेची थी, उस साल की उपज का भावांतर मूल्य उनके खाते में अभी तक नहीं आया है. जगदीश बताते हैं कि हर साल घाटा होता देख मन में यह सवाल बार-बार आता है कि अब फसल बोएं या नहीं, लेकिन फसल लेने के अलावा उनके पास कोई विकल्प भी नहीं है !

क्या आन्दोलनों का असर होता है ?

युवा किसान संगठन के रविंद्र चौधरी बताते हैं कि भारत सरकार की एक्सपोर्ट पॉलिसी में लहसुन को  खुले बाजार में ही छोड़ दिया गया है, यह न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में भी नहीं आती, इससे लहसुन के किसान बहुत संकट में हैं. यह स्थिति लंबे समय से बनी हुई है लहसुन प्याज की फसल ऐसी है जिसे ज्यादा लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है, परिवहन लागत तक नहीं निकलने के चलते उसे या तो सड़क किनारे फेंक रहे हैं या गलियों में बहा रहे हैं. वह कहते हैं कि सरकार को लहसुन की फसल पर एक पॉलिसी बनाकर और किसानों को आठ हजार रुपए प्रति क्विंटल का मिनिमम सपोर्ट प्राइस देना चाहिए. पिछले 2 सालों में संकट लगातार बढ़ रहा है और स्थिति और ज्यादा खराब हो रही है इसके लिए वह सरकार से मांग कर रहे हैं और विरोध प्रदर्शन भी कर रहे.

न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं तो फिर क्या ?

केंद्र सरकार जल्दी ख़राब होने वाली या नाशवान प्रकृति की उपजों के लिए एक अन्य मंडी हस्तक्षेप योजना क्रियान्वित करती है, इसमें बम्पर उत्पादन होने की स्थिति में फसल का दाम दस प्रतिशत तक कम होने पर सहयोग का प्रावधान है, लेकिन लहसुन के मामले में इस योजना का लाभ फिलहाल किसानों को नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में किसान की दोगुनी आय होने का लक्ष्य जाने कब पूरा होगा ? सरकार ने नाशवान प्रकृति की वस्तुओं को देश की किसी भी मंडी तक पहुँचाने के लिए जोर-शोर से किसान रेल चलाई थी, जाने वह रेल कहाँ अटकी है ?

- राकेश कुमार मालवीय

 

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