टिकर

5/recent/ticker-posts

समीक्षा : जगमोहन से जगजीत बनने की दास्तान

 

शनिचर को यह किताब मुझे मिली और रविवार को 240 पन्ने पढ़ डाले. ऐसा कम ही होता है कि तकरीबन एक ही बैठक में आप किसी किताब को इस तरह से पूरा कर लें. इसका एक कारण यह हो सकता है कि किताब बहुत दिलचस्प हो, दूसरा यह हो सकता है कि किताब की विषय वस्तु दिल को छू लेने वाली हो या वह किसी ऐसे शख्स के बारे में हो जिसे दुनिया ने अपने सिर माथे बैठाया हो. 

किताब के लेखक श्री राजेश बादल जी के साथ ब्लागर. 
मैं जिस किताब से आपको रूबरू कराना चाहता हूँ वह एक किस्म से इन तीनों का ही मेल है. ऐसा अद्भुत संकलन जिसमें गहरा जमीनी शोध कार्य है, किस्से हैं, मुलाकातें हैं, सचमुच जिन्दगी का ड्रामा है, प्रेम है, जुदाई है, संघर्ष है, फर्श से अर्श तक का सफ़र है, और ऐसा कोई तभी कर सकता है जबकि किसी ने पूरी तरह डूबकर अपने शब्दों में जिन्दगी को उतारा हो, सचमुच यदि राजेश बादल (Rajesh Badal) यह काम न करते तो जगजीत को तो थोडा बहुत जान रहे होते, लेकिन जगमोहन के दुनिया जीतने की दास्तां शायद सामने नहीं आती.

जी हाँ हम बात कर रहे हैं दुनिया में गजलों को एक नयी पहचान देने वाले और इसे लोगों के जेहन में अन्दर तक बैठा देने वाले हर दिल अजीज गायक जगजीत सिंह (Jagjit Singh) की. इस फानी दुनिया से कूच करने के लगभग 11 बरस बाद इन पर एक नायब किताब आई है ‘कहाँ तुम चले गए’ दास्तान ए जगजीत (Kahan tum Chale gaye).  यह जगजीत कि जिन्दगी की लिखित किस्सागोई है.

राजेश बादल एक मंझे हुए वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं, जो अपने पास पत्रकारिता का 46 बरस का अनुभव लिए हैं, इस किताब के आने के बाद ही पता चला कि देश के करोड़ों लोगों की तरह वह भी जगजीत सिंह को पसंद करते हैं. उनके पास जगजीत सिंह के वे सारे कैसेट मौजूद हैं जिन्होंने दुनिया में तहलका मचा दिया. सधी और सम्प्रेषणीय भाषा शैली जिन छुपे हुए किस्सों को सामने लाती है वह पाठकों को चौंकती है, न केवल जगजीत सिंह के दीवानों के लिए बल्कि वह हर शख्स आम ओ खास के लिए यह किताब नए आयामों से वाकिफ कराती है.

बहुत कम लोग जानते हैं कि जगजीत सिंह के पिता उन्हें गुरुवाणी का पाठ करवाने के लिए संगीत की शिक्षा दिलवाने में दिलचस्पी रखते थे और वह चाहते थे कि जगजीत यानी जगमोहन गुरुद्वारों में जाकर शब्द कीर्तन कर सेवा करें. उन्होंने जगजीत सिंह को बाकायदा संगीत की शिक्षा दिलवाई.  जगजीत की पिता सिख धर्म से प्रभावित थे और उन्होंने सिख धर्म को अपना दिया था न केवल अपनाया था बल्कि अपने जीवन में उतारा भी था. वह एक नामधारी सिख थे जो अपने धर्म में बिल्कुल पक्के थे. एक मौके पर जब जगमोहन के मुंह से फ़िल्मी संगीत निकल गया था, तो उनकी इतनी पिटाई की थी कि उनकी बहन को बचाने के लिए उनके शरीर पर गिरना पड़ा. एक बार जब उनके पिता जगमोहन को गुरु के पास ले गए तो उनकी वाणी सुनकर गुरु ने कहा था कि ‘यह लड़का तो जग जीतेगा तुम इसका नाम बदलकर जगजीत कर दो’ तब से ही इनका नाम जगजीत सिंह हो गया. ऐसे के दिलचस्प और अनछुए किस्से इस किताब में मिलते हैं।

जगजीत सिंह का संगीत प्रेम इतना ज्यादा था कि उन्होंने अपनी पढ़ाई से ज्यादा प्राथमिकता संगीत को दी. दीवानगी की हद तक संगीत को ही अपना सबकुछ मान बैठे थे. हॉस्टल में भी छात्र उनकी संगीत साधना से परेशान होते थे.

जगजीत सिंह ऐसे ही गजल सम्राट नहीं बन गए ! इस किताब में उनके संघर्ष को भी पूरी तरह से उकेरा गया है. जगजीत जब पहली बार मुंबई गए और तो उनके पास केवल 7 दिन के रहने के लायक पैसे थे, जब कुछ हाथ नहीं लगा तो लौटने लगे, उनके पास रेल का टिकट खरीदने तक के पैसे नहीं थे, बेटिकट यात्रा की और जब टीटी आया तो वह टॉयलेट में छुप गए.

अपने कॉलेज के दिनों में उन्होंने अपनी संगीत से कॉलेज के प्रोफेसरों को भी प्रभावित कर लिया था और प्रोफ़ेसर भी जानते थे कि इस कारण उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है तो वह जगजीत सिंह को अलग कमरे में बैठा कर नकल भी करवा दिया करते थे,

यह भी एक धर्म संकट था कि जगजीत के पिता एक पक्के सिख थे और जब जगजीत को लम्बे संघर्ष के बाद अपना पहला अलबम रिलीज करना था उसके लिए कंपनी ने शर्त रखी कि उन्हें इस एलबम के कवर के लिए अपने दाढ़ी मूंछ और सरदार वाले व्यक्तित्व की जगह एक क्लीन सेव होना चाहिए, उन्होंने संगीत को प्राथमिकता पर रखा अपने पिता की नाराजगी का खतरा झेलते हुए भी क्लीन शेव करवा लिया, हालांकि उन्होंने केवल अपना चोला उतारा, धर्म नहीं। वह एक पक्के धार्मिक व्यक्तित्व थे कर्म से भी.

यह किताब यह किताब उनकी प्रेम कहानी को भी सामने लाती है, कैसे उन्हें अपने संघर्ष के दिनों में चित्रा (Chitra Singh) मिली और दोनों की बीच में प्रेम बना, जो कि शादी तक जा पहुंचा.  इनकी पूरी प्रेम कहानी को यह किताब बहुत सिलसिलेवार ढंग से बयां करती है. एक फनकार जोड़ी की रूप में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की यात्रा को भी प्रस्तुत करती है.

किताब में वह हिस्सा भी है जो कि जगजीत सिंह की जिंदगी का सबसे दुखद पहलू रहा है यानी कि उनके बेटे विवेक (Vivek) की एक सड़क दुर्घटना में मौत.  इस दुर्घटना के बाद विवेक को जिस तरह से मीडिया रिपोर्ट में विलेन साबित किया गया और बाद में विवेक की बहन ने अपने भाई की दामन पर लगा यह दाग छुड़ाया और मौत की असली वजह हो सामने लेकर आई उस कहानी को भी बयान किया गया है.

इसके बाद से जगजीत सिंह की संगीत यात्रा में जो बदलाव आया उसे दुनिया जानती है, कुल मिलाकर  जगमोहन से जगजीत बनने और अंतिम साँस तक की पूरी यात्रा को 240 पन्नों में इस खूबसूरती से समेट दिया गया है कि आपको लगता है कि आप एक फिल्म देख रहे हैं. इसलिए क्योंकि जगजीत को हम सब ने अपने जीवन के हिस्सों गाहे-बगाहे में कहीं ना कहीं महसूस किया है.

हालाँकि शुरुआत में पिता की जो शख्सियत सामने निकल कर आती है वह बाद के पन्नों में गायब हो जाती है.  उनके पिता के हिस्सों को शामिल कर लिया जाता तो यह एक मुकम्मल कहानी बन सकती थी. बहरहाल जगजीत सिंह पर यह बेहतरीन किताब है.  

-  राकेश कुमार मालवीय 

(Rakesh Kumar Malviya)


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ