राजेश्वर गौर
एक भारतीय आत्मा के विशेषण से विभूषित स्वर्गीय माखनलाल चतुर्वेदी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उन सेनानियों में से हैं जिन्होंने अपना समग्र जीवन राष्ट्र सेवा में अर्पित कर दिया। बाबई में जन्मे चतुर्वेदीजी ग्राम हिरनखेड़ा में कुछ वर्ष रहे यहीं उनकी काव्य सेवा चलती रही। हिरनखेड़ा के पटेल स्वर्गीय श्री कालूरामजी गौर के सान्ध्यि में चतुर्वदीजी यहां स्थापित हुए। जिस स्थान पर वह रहे उसे स्वराज्य की संज्ञा दी गई।
आज भी लोग उस स्थान को स्वराज्य के नाम से जानते हैं। चतुर्वेदी जी ने यहां एक स्कूल प्रारंभ किया था जिसमें दूर—दूर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिलए आते थे। चतुर्वेदीजी ने हिरनखेड़ा के तालाब के किनारे स्वराज्य आश्रम बनाया था। यहीं पर हाई स्कूल का संचालन होता था साथ ही यहां पर छात्रावास की सुविधा भी छात्रों के लिए थी जिसमें कि बाहर कि छात्र यहीं पर रुकते थे। इन्हीं छात्रों में से एक छात्र स्व बृजलाल वार्मा आगे चलकर भारत सरकार में संचार मंत्री हुए।
यहां चतुर्वेदीजी के पास स्वतंत्रता संग्राम के अनेक यशस्वी नेता भूमिगत रहकर आंदोलन चलाते थे इनमें से एक नाम पंडित सुंदरलाल तपस्वी का है जिन्हें गिरपफतार करने के लिए अंग्रेज सरकार ने बड़ा ईनाम रखा था। पंडित सुंदरलाल तपस्वी ने भारत में अंग्रेजी राज ग्रंथ की रचना की थी जिसके चार भाग प्रकाशित हुए थे और जिन्हें अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था। ऐसे ही यहां माखनलालजी के भाई श्री हरिप्रसादजी भी इसी स्कूल में अध्यापक रहे थे जो बाद में श्याम प्रसाद शुक्ल के मंत्रीमंडल में मंत्री पद पर सुशोभित हुए थे।
चतुर्वेदीजी के नेतृत्व में यहां स्वतंत्रता संग्राम डटकर चला। उसके भाईयों यथा स्वर्गीय स्वर्गीय श्री रामदयाल चतुर्वेदी, ब्रजभूषण चतुर्वेदी ने भी अपना पूर्ण सहयोग दिया।
हिरनखेड़ा ग्राम के निवासियों ने उनको भरपूर सहयोग दिया। हिरनखेडा के बाद चतुर्वेदी जी यहां से खंडवा चले गए, जहां वे अंत तक रहे और कर्मवीर के प्रकाशन से अपनी राष्ट्र सेवा और काव्य सेवा करते रहे उनके नाम पर आज यहां माखनलाल चतुर्वेदी हाई स्कूल चल रहा है।
( लेखक परिचय: श्री राजेश्वर गौर हिरनखेड़ा गांव के निवासी हैं। वह साठ—सत्तर के दशक में मध्यप्रदेश की पत्रकारिता के बड़े नाम थे, इसके बाद वह अध्यापन के कार्य से जुड़े और इटारसी के एमजीएम कॉलेज में प्रोफेसर हुए। इन दिनों हिरनखेड़ा में निवास करते हुए आध्यात्मिक सेवा में।यह लेख उन्होंने हमारे अनुरोध पर 2004 पर एक अनियतकालीन प्रकाशन जनसंवाद के लिए लिखा था। )
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Pandit Makhanlal Chaturvedi |
आज भी लोग उस स्थान को स्वराज्य के नाम से जानते हैं। चतुर्वेदी जी ने यहां एक स्कूल प्रारंभ किया था जिसमें दूर—दूर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिलए आते थे। चतुर्वेदीजी ने हिरनखेड़ा के तालाब के किनारे स्वराज्य आश्रम बनाया था। यहीं पर हाई स्कूल का संचालन होता था साथ ही यहां पर छात्रावास की सुविधा भी छात्रों के लिए थी जिसमें कि बाहर कि छात्र यहीं पर रुकते थे। इन्हीं छात्रों में से एक छात्र स्व बृजलाल वार्मा आगे चलकर भारत सरकार में संचार मंत्री हुए।
यहां चतुर्वेदीजी के पास स्वतंत्रता संग्राम के अनेक यशस्वी नेता भूमिगत रहकर आंदोलन चलाते थे इनमें से एक नाम पंडित सुंदरलाल तपस्वी का है जिन्हें गिरपफतार करने के लिए अंग्रेज सरकार ने बड़ा ईनाम रखा था। पंडित सुंदरलाल तपस्वी ने भारत में अंग्रेजी राज ग्रंथ की रचना की थी जिसके चार भाग प्रकाशित हुए थे और जिन्हें अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था। ऐसे ही यहां माखनलालजी के भाई श्री हरिप्रसादजी भी इसी स्कूल में अध्यापक रहे थे जो बाद में श्याम प्रसाद शुक्ल के मंत्रीमंडल में मंत्री पद पर सुशोभित हुए थे।
चतुर्वेदीजी के नेतृत्व में यहां स्वतंत्रता संग्राम डटकर चला। उसके भाईयों यथा स्वर्गीय स्वर्गीय श्री रामदयाल चतुर्वेदी, ब्रजभूषण चतुर्वेदी ने भी अपना पूर्ण सहयोग दिया।
हिरनखेड़ा ग्राम के निवासियों ने उनको भरपूर सहयोग दिया। हिरनखेडा के बाद चतुर्वेदी जी यहां से खंडवा चले गए, जहां वे अंत तक रहे और कर्मवीर के प्रकाशन से अपनी राष्ट्र सेवा और काव्य सेवा करते रहे उनके नाम पर आज यहां माखनलाल चतुर्वेदी हाई स्कूल चल रहा है।
( लेखक परिचय: श्री राजेश्वर गौर हिरनखेड़ा गांव के निवासी हैं। वह साठ—सत्तर के दशक में मध्यप्रदेश की पत्रकारिता के बड़े नाम थे, इसके बाद वह अध्यापन के कार्य से जुड़े और इटारसी के एमजीएम कॉलेज में प्रोफेसर हुए। इन दिनों हिरनखेड़ा में निवास करते हुए आध्यात्मिक सेवा में।यह लेख उन्होंने हमारे अनुरोध पर 2004 पर एक अनियतकालीन प्रकाशन जनसंवाद के लिए लिखा था। )
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