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कोरोना काल में सबसे बड़ी जरुरत बताई जा रही है कि आपकी प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक मजबूत होना चाहिए, यह क्षमता अच्छे पोषण से प्राप्त होती है और अच्छा पोषण मिलता है अच्छे भोजन से। कोरोना काल में विश्व तंबाखू निषेध दिवस हमें यह पुनर्विचार करने पर मजबूर करता है कि हम अपने भोजन में कितना पोषण शामिल करते हैं और कितना व्यसन और क्या हमें इससे मुक्त होने की जरूरत है ?
तंबाखू इंडस्ट्रीज हमारे अनुमान से कहीं ज्यादा बड़ी है। इस सदी की शुरुआत में
तंबाखू भारत में तंबाखू की खपत 441 मिलियन किलोग्राम थी। 2009 तक तंबाखू उत्पादन
के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश था। ग्लोबल एडल्ड टौबेको सर्वेक्षण 2016—17 के
मुताबिक भारत में 266 मिलियन व्यस्क लोग यानी आबादी का तकरीन 28.4 प्रतिशत तंबाखू
के किसी न किसी प्रकार के उत्पादों का प्रयोग करते हैं। 10 प्रतिशत व्यस्क लोग
धुएं वाले और 21 प्रतिशत लोग गैर धुएं वो उत्पादों का प्रयोग करते हैं।
जिस देश की सत्तर प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करती है, वहां पर एक सिगरेट पीने वाला व्यक्ति महीने भर में सिगरेट पर 1192 रुपए और
बीड़ी पीने वाला आदमी बीड़ी पर हर महीने औसतन 284 रुपए खर्च कर देता है। भारतीय
परिवारों में भले ही घर में साग—सब्जी, दूध जैसी सबसे जरुरत की
चीजों पर अपना बजट घटा देता हो,
लेकिन तंबाखू और दूसरे
व्यसनों पर अपने खर्चों की वह कभी समीक्षा नहीं करता। यही कारण है कि नशे का
कारोबार हमारे समाज में कभी घाटे में नहीं जाता।
तंबाखू और शराब इन दोनों के ही राजस्व का मोह कोई भी सरकार नहीं त्याग पाती। एक
तर्क यह भी दिया जाता है कि देश में तंबाखू उत्पादन में तकरीबन 3.5 मिलियन लोगों
को रोजगार मिलता है। इसकी बिक्री से सरकार को भारी राजस्व मिलता है, जब भी तंबाखू
पर प्रतिबन्ध की बात होती है तो यही आंकड़े सरकारों के सामने आकर खड़े हो जाते हैं
और तंबाखू पर पूरे बैन की कोई हिम्मत ही नहीं कर पाता है। तंबाखू पर बैन हमेशा एक
रस्मअदायगी बनकर रह गया है। ऐसे में सरकारों ने तंबाखू का सेवन कम करने का पूरा
दारोमदार जनता पर ही डाल दिया है। लेकिन यह भी उतनी ही खरी बात है कि कठोर
निर्णयों के बिना धूम्रपान पूरी तरह से खत्म हो नहीं सकता।
हालांकि भारत में धूम्रपान से संबंधी कई कानून हैं, लेकिन उनको धुएं में ही उड़ा दिया जाता है। 2008 में गांधी जयंती के दिन से
पूरे देश में सार्वजनिक स्थलों,
कार्यस्थलों पर धूम्रपान
को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है, लेकिन इसका कितना पालन
किया और करवाया जाता है, यह सभी भलीभांति जानते हैं। 18 साल से कम उम्र
वाले बच्चों को धूम्रपान से संबंधित सामग्री नहीं बेचने, और स्कूलों के सौ यार्ड के दायरे में नहीं बेचने का भी एक कानून है, लेकिन यह दोनों कानून भी बस कागजों पर ही हैं। धूम्रपान से संबंधित विज्ञापनों
पर प्रतिबंध है, लेकिन उनकी बिक्री कम होने का नाम ही नहीं लेती
है। तंबाखू के उत्पादों पर भयानक तस्वीरें और चेतावनी छापी जाती है। पिछले दस
सालों से देश में तंबाखू नियंत्रण के लिए एक नेशनल प्रोग्राम चलाया जा रहा है। पर
जनता सब जानते—समझते हुए इस व्यसन को खुद से दूर नहीं कर पाती।
ग्लोबल एडल्ट टौबेको सर्वेक्षण 16-17 के ही मुताबिक तकरीबन 93 प्रतिशत लोगों
को यह पता है कि धूम्रपान से उन्हें गंभीर बीमारियां जकड़ सकती हैं, इस जानकारी के बाद 55 प्रतिशत लोग इसे छोड़ने की बात कहते भी हैं, 38 प्रतिशत लोग छोड़ने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन बहुत थोड़े ही
इसमें कामयाब हो पाते हैं। धूम्रपान करने वाले लोगों को यह भी सोचना चाहिए कि वह
खुद को तो नुकसान पहुंचा ही रहे हैं, उनके साथ अन्य परिजनों को, अपने मित्रों को भी इसकी चपेट में लेते हैं। सर्वेक्षण में बताया गया है कि
39 प्रतिशत लोग घरों में, 30 प्रतिशत लोग कार्यस्थलों पर और 7 प्रतिशत
लोग रेस्टारेंट में सेकंड हैंड स्मोक के शिकार होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि
बीड़ी और सिगरेट के धुएं में चार हजार तरह के केमिकल हो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन बताता है कि तंबाखू के
किसी भी तरह के सेवन से कैंसर, श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारियां, हृदय से जुड़ी बीमारियों और कई अन्य गंभीर बीमारियां पैदा हो सकती है। लंग
कैंसर की वजह से पुरुषों की 90 प्रतिशत और स्त्रियों की 80 प्रतिशत मौतों की वजह
धूम्रपान है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में 1.35 मिलियन लोगों की हर
साल धूम्रपान से हुई बीमारियों की वजह से मौत हो जाती हैं। यह कोई छोटा सा आंकड़ा
नहीं है।
पिछले सवा साल में कोविड के कारण भारत में तकरीबन सवा तीन लाख मृत्यु हुई हैं।
कोविड की महामारी ने हमें मास्क लगाने, शारीरिक दूरी बनाने और
स्वच्छता संबंधी व्यवहारों को अपनाने का सबक दिया है। धूम्रपान कहीं न कहीं हमारे
फेफड़ों को भी भारी नुकसान पहुंचाता है। इससे संबंधित अध्ययन तो बाद में ही आ
पाएंगे कि धूम्रपान करने वालों को कोविड19 के वायरस ने कितना और कैसा नुकसान
पहुंचाया, लेकिन मोटी बात तो यही है कि आज कोविड है कल कुछ
और भी नयी महामारी सामने आ सकती है,
ऐसे में स्वच्छ भारत अपने
को स्वस्थ भारत में कैसे तब्दील करता है ? बाहर की स्वच्छता पर देश ने बहुत ध्यान
दे लिया, लेकिन क्या धूम्रपान, तंबाखू, खैनी जैसे वस्तुओं को भी गंदगी मानकर उनसे पूर्ण रूप से मुक्त होने का बीड़ा
कब उठाते हैं ?
राकेश कुमार मालवीय
Published by News18
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