राकेश कुमार
मालवीय
नेताजी के आने से उस जगह की तस्वीर बदल
जाती है। रातों—रात
सड़कें बन जाती है। साफ—सफाई
करके जगह चमका दी जाती है। अधूरे काम रातों रात पूरे कर दिए जाते हैं। सोया सिस्टम
जाग जाता है। रात—रात
भर काम करता है। नेताजी के लिए लाखों की लागत वाले शामियाने तान दिए जाते हैं। आने
वाला नेता यदि मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री हो तो इन कामों का हो जाना कोई आश्चर्य
की बात नहीं है। चाहे सरकार किसी पार्टी की हो, सत्ता का यह चरित्र पुराने जमाने से ऐसा ही है, फर्क इतना है कि अब बेशर्मी अपनी हदों
से निकलकर बहुत आगे आ गई है। इसके लिए अब व्यवस्था को कुसूरवार ठहरा सकते हैं या
नेताओं की का खोता असर समझ सकते हैं, जो व्यवस्था उनकी सुनती ही नहीं।
यह मामला एक ऐसे गांव से जुड़ा है जहां
खुद मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान रात बिताकर आए। सतना जिले की मझगवां
ब्लॉक में आने वाला तुर्रा ग्राम पंचायत अब मध्यप्रदेश में विकास का मजाक उड़ाता
दिख रहा है। कहने को पिछले साल मुख्यमंत्री चित्रकूट उपचुनाव में इस गांव में एक आदिवासी के
घर रात बिताकर आए, लेकिन
न इससे गांव की कोई किस्मत बदली,
और अब
भी गांव का हाल वैसा ही है।
गांववालों की मानें तो इस गांव में एक
भी प्रधानमंत्री आवास नहीं बन पाया है। ऐसा नहीं कि इसके लिए ग्राम पंचायत की ओर
से कोई प्रयास नहीं किए गए याकि इस गांव में कोई गरीब परिवार नहीं रहता जिसका
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत चयन करके आवास बनाया जा सके। कोशिश की गई, लेकिन लोगों की अपेक्षाएं कागजों के
ढेर में किसी फाइल तले ही दबी रही होंगी, तभी तो मुख्यमंत्री के इस गांव को ऐतिहासिक महत्व का बना दिए जाने के
बाद भी नौकरशाही ने शायद ही कोई तवज्जो दी। गांव के लोग बड़ी उम्मीद से अब भी
विकास की बाट जोह रहे हैं।
पर क्या ऐसा वाकई है, इसके लिए हम प्रधानमंत्री आवास की
वेबसाइट पर गए। अच्छी बात है कि मोदी जी के डिजिटल इंडिया में हम यह देख पा रहे
हैं कि किस ग्राम पंचायत में कितने घर बना दिए गए हैं, कितने अधूरे हैं और कितनी राशि उनको
आवंटित करके जारी कर दी गई है।
हम चाहें तो एक—एक आदमी के घर जाकर हम पूछ सकते हैं कि
पोर्टल जो राशि दिखा रहा है, क्या
वास्तव में उनको मिली है। प्रधानमंत्री जी यह बहुत अच्छी बात है कि लोगों के हाथ
में आपने डिजिटल ताकत दी है, अब
डिजिटल टेक्नॉलॉजी के साथ नॉलेज या डिजिटल साक्षरता पर भी बड़े पैमाने पर काम किया
जाना चाहिए, हर
गांव में एक दो ऐेसे युवा ई वालंटियर जरूर तैयार होने चाहिए जो गांव में मिल रही
योजनाओं का रियल्टी चेक करके आपको ट्विटर के जरिए बता सकें कि वास्तव में आप जो
दिल्ली में बैठकर करते हैं वह जमीन तक पहुंच पाता है या नहीं। हमने इसी राज्य में
देखा है कि बने बनाए घ्ररों के सामने दीवार खड़ी करके उसपर प्रधानमंत्री आवास लिख
दिया गया और पूरा पैसा निकाल लिया गया है। तकनीक जानकारी तो दे रही है, लेकिन भ्रष्ट आचरण को रोकने के लिए कोई
तरीका कारगर होता नहीं दिख रहा है,
बल्कि नए—नए
तरीके निकाल लिए जा रहे हैं।
खैर तुर्रा ग्राम पंचायत में आवास के
लिए पैसा जारी हुआ ही नहीं। हमने वेबसाइट पर इस बात को जांचा तो वहां केवल दो प्रधानमंत्री
आवासम बनना दिखाई दे रहा है। इसमें भी एक मकान अधूरा है।
मुख्यमंत्री ने इस गांव में रात बिताने
के बाद यह माना था कि इस इलाके में भयंकर गरीबी है। उन्होंने कहा था कि वह चुनाव
होने के कारण उस वक्त कोई घोषणा नहीं कर सकते, लेकिन चुनाव के बाद पूरी सरकार लेकर जाएंगे और इस इलाके की तस्वीर
बदल देंगे। इस इलाके की जनता ने इस वायदे के बाद भी यहां भारतीय जनता पार्टी को
नहीं जिताया। जिस गांव ने मुख्यमंत्री की मेजबानी की, उस गांव की तस्वीर भी नहीं बदल सकी। प्रधानमंत्री
आवास इसका एक उदाहरण मात्र है। कई और योजनाओं से भी यह गांव अछूता है।
डिजिटल तकनीक में एक और सुविधा है कि
डेटा में परिवर्तन करने की गुंजाइश बनी रहती है। हम आनलाइन पत्रकारिता करने वालों
के लिए यह सुविधा भूलवश या लापरवाही वश गलत तथ्य लिख जाने पर संपादन करने के काम
आती है। पर लोग चालाक हैं और गलतियों का स्क्रीन शॉट लेकर उसे भरे बाजार में वायरल
कर देते हैं। हमने भी वेबसाइट की रिपोर्ट का स्क्रीन शॉट लेकर रख लिया है।
इसी गांव में लगे कई फिट उंचे टॉवर पर
चढ़कर गांव का एक फोटो लेने की हिम्मत हम नहीं कर पाए, कोई प्रोफेशनल फोटोग्राफर होता तो शायद
अपने हौसले से यह काम कर जाता। आश्चर्य होता है कि दूर आदिवासी गांवों में भी जहां
भूख, गरीबी, कुपोषण, रोजगार, पलायन
जैसी समस्याएं जस की तस हैं वहां इतने बड़े—बड़े टॉवर महज कुछ सालों में कैसे पहुंच गए। कैसे आटा की समस्या से
जूझने वाले इलाकों में लोगों के हाथ में डाटा पहुंच गए।
देश में मोदी सरकार के अने के बाद बड़े
पैमाने पर घ्रर बनाने का काम शुरू हुआ है। मोदी सरकार का यह संकल्प है कि वह 2022
तक सभी आवासहीनों को घर बनाकर दे देगी। तीन सालों में तकरीबन एक करोड़ आवास तैयार
करके लोगों को छत देने का वायदा सरकार ने किया है। यह सहायता उन लोगों को दी जाएगी
जो या तो आवासहीन हैं या जिनके घर जीर्ण—शीर्ण होकर रहने लायक नहीं बचे हैं।
रोटी—कपड़ा और मकान की मूलभूत जरूरतों का यह सपना आजादी के इतने सालों बाद
भी दोहराया जा रहा हो तो सोचिए कि सरकारों ने अब तक आम लोगों के लिए क्या किया
धरा। क्या वास्तव में हम पिछड़े थे जिसके जख्म सालों साल बाद भी नहीं भरे जा सके, या वास्तव में गरीब आवासहीन आदमी
सरकारों की प्राथमिकता में नहीं रहा। सरकार के ग्रामीण विकास विभाग की वेबसाइट
बताती है कि देश में तकरीबन 52 लाख मकान बना दिए गए हैं, इनमें अकेले मध्यप्रदेश में दस लाख घर
बनाए जा चुके हैं, सवाल
यह है कि आखिर क्यों एक गांव में प्रधानमंत्री का एक भी आवास नहीं है, जहां मुख्यमंत्री स्वयं लोगों से वायदे
करके आए हैं।
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