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शिक्षा के अधिकार कानून ने बढ़ाया निजीकरण: अनिल सदगोपाल



भोपाल, 5/4/2018 शिक्षा के अधिकार कानून ही बच्चों की शिक्षा को छीनने वाला कानून बन चुका है। इस कानून में जो प्रावधान किए गए हैं, उनका असर आज दिखाई दे रहा है। सार्वजनिक स्कूल बर्बाद होने को हैं और निजी स्कूलों की कहानी किसी से छिपी नहीं है, ऐसे में सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को बचाने की बड़ी चुनौती हमारे सामने खड़ी है। इसे समझना होगा। ख्यात शिक्षाविद् अनिल सद्गोपाल ने यह विचार व्यक्त किए। वह मीडिया एडवोकेसी संस्था विकास संवाद और मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच की ओर से आयोजित एक परिचर्चा में बोल रहे थे। 

पर्याप्त बजट का प्रावधान ही नहीं

अनिल ने बताया कि 1966 में कोठारी आयोग बना तो उसने अनुमान लगाया कि देश में अच्छी शिक्षा व्यवस्था के लिए जीडीपी का अभी जो ढाई प्रतिशत खर्च हो रहा है उसे 1986 तक छह प्रतिशत तक ले जाना होगा। लेकिन 1986 में यह केवल साढ़े तीन प्रतिशत ही था। शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने से पहले 2006 में एक समिति बनाई गई और उस समिति ने भी अनुमान लगाया कि अगले दस सालों में शिक्षा का अधिकार देने के लिए जीडीपी का 10 प्रतिशत तक ले जाना होगा, लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट को गायब ही कर दिया गया। शिक्षा पर सरकार जीडीपी का केवल तीन प्रतिशत हिस्सा ही खर्च करती है। 

अभी तक जनगणना के काम में लगे शिक्षक

शिक्षा के अधिकार कानून में लिखा है कि शिक्षकों को गैर शिक्षकीय कार्यों में नहीं लगाया जाएगा, लेकिन इसमें जनगणना, चुनाव और राष्टीय आपदा आदि को छोड़ दिया गया। लेकिन देखिए कि जनगणना का स्वरूप 2011 में बदलने के बाद अब भी कई तरह की जनगणना में शिक्षक लगे हुए हैं, और जब स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है तो उसका नुकसान देश के सबसे गरीब बच्चों का होता है, क्योंकि प्राइवेट स्कूल के किसी मास्टर को इस काम में नहीं लगाया जाता है। उन्होंने बताया कि कोठारी आयोग की रिपोर्ट में जिस पड़ोस स्कूल का जिक्र था शिक्षा के अधिकार कानून में उसकी अवधारणा भी बदल दी गई है।

खतरनाक है दिल्ली के स्‍कूलों का यह नजरि‍या 

दिल्ली में स्कूलों के वर्तमान मॉडल पर उन्होंने कहा कि जिस तरह के विजन को लेकर काम कि‍या जा रहा है वह बहुत खतरनाक है। उन्होंने बताया कि दिल्ली के स्कूलों में पिछले तीन सालों से पहली कक्षा को दो भागों में ​बांट दिया है, एक हाईपरफार्मेंस और दूसरा लो परफार्मेंस। हाई परफार्मेंस वाले बच्चे इंग्लिस में पढ़ते हैं और लो परफार्मेंस वाले हिंदी में। इस तरह से बच्चों के बंटवारा की अवधारणा समाज के लिए घातक है।




केलीफोर्निंया में खोजने से नहीं मिला प्राइवेट स्कूल

केलीफोर्निंया में खोजने से नहीं मिलता प्राइवेट स्कूल: अनिल ने बताया कि जब वह 2008 में कुछ मित्रों के आग्रह पर केलीफोर्निंया में शिक्षा के सिस्टम को समझने के लिए गए तो उन्होंने वहां पर कुछ प्राइवेट स्कूल मे विजिट करवाने का निवेदन किया। इसके लिए उनके मित्रों को बहुत परिश्रम करना पड़ा, क्योंकि वहां पर सरकार ने स्कूल शिक्षा व्यवस्था को बचाए रखा है। बहुत खोजने पर एक स्कूल मिला, तो वहां जाते ही गेट पर बच्चे बर्तन मांजते मिले। इस बारे में जब उन्होंने उस स्कूल के प्राचार्य से पूछा तो उन्होंने बताया कि इसे तो हमने आपके देश से ही सीखा है। सेवाग्राम में महात्मा गांधी की बुनियादी तालीम के मॉडल को देखकर उन्होंने इसे अपने स्कूल में लागू किया और इसे वहां बुरा नहीं माना जाता। वहां बारीबारी से मिड डे मील भी बच्चे मिलकर बनाते हैं, हमारे यहां इससे ठीक उलट नजरिया है।

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