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इस जादुई पौधे को केवल एक बार खाने से नहीं पड़ते कभी बीमार !

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कुदरत में ऐसी—ऐसी चमत्कारिक चीजें भरी पड़ी हैं जिनके बारे में हम जानते ही नहीं हैं। कई बार तो ऐसी चीजें हमारे आसपास भी होती हैं, लेकिन हम उनके बारे में अज्ञान ही बने रहते हैं। लेकिन बात जहां कुदरत और मनुष्य के रिश्ते की आती है तो जंगलों और वनों में रहने वाले आदिवासी इनके बारे में सबसे बेहतर जानते हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले बैगा आदिवासियों को वैद्य कहा जाता है। यह जंगलों में रहते हैं और उनको जंगली औषधियों और खान—पान की जानकारी परम्परागत रूप से मिलती है। इन्हें जंगल का रक्षक भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह जंगल से उतनी ही जड़ी—बूटियां लेते हैं जितनी इन्हें जरूरत होती है। आज हम इन बैगाओं के पास की एक ऐसी चमत्कारिक चीज के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे साल में केवल एक बार खाने से कभी बीमार नहीं पड़ते हैं।



बैगाओं के परम्परागत खाद्य व्यवस्थाओं पर अध्ययन करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नरेश विश्वास बताते हैं कि बैगा आदिवासी मानते हैं जंगलों में पाई जातने वाली कोझियारी भाजी को साल में एक बार जरूर खाना चाहिए।

इसे खाने से बीमारी नहीं होती है। कोंझियारी भाजी याने जंगल में होने वाले सफ़ेद मूसली का पत्ता। यह सभी जानते हैं कि सफेद मूसली शक्विर्धक औषधि है। इसके साथ ही कई और औषधियां हैं।

चिरको पिहरी

Photo: Naresh Vishwas
आधुनिक समाज में इसे मशरूम की संज्ञा दी जाती हैं। इसे नए जमाने का चलन कह सकते हैं। लेकिन जंगलों में यह स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी सैकड़ों सालों से खाई जाती है।


जंगल के आस-पास रहने वाले गाँव के लोगों की इस समय का प्रमुख सब्जी है। स्वाद में यह आलू की तरह ही लगती है। लेकिन इसमें जिस्मानी ताकत भरपूर होती है। इसे चिरको पिहरी कहते हैं।

इसके साथ ही कई और भी सब्जियां हैं। जैसे पुट्पुरा, बोड़ा, पुटू इनके अलग-अलग इलाके में अलग-अलग नाम हैं।

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