रानीताल नाम के साथ ही ताल शब्द पानी और समाज का रिश्ता जोड़ता है। ताल यानी तालाब। जाहिर है यह अपने आप में पानी की समृद्ध परम्परा को भी अपने में समेटे होगा। रानीताल गांव में प्रवेश करते ही आपको इसका आभास हो भी जाता है। यहां एक ताल भी आपका स्वागत करता है और एक बावड़ी भी। दोनों का आकार और क्षमता इतनी कि पूरे गांव की प्यास बुझाने में सक्षम है। यह अलग बात है कि पिछले चार-पांच साल लगातार कम बारिश ने इन्हें रीता कर दिया। अब यहां कहने भर को ताल और बावड़ी है, पर दरअसल गांव बेपानी हो चुके हैं। माना जाता है कि जो गांव बेपानी हो जाता है उसका आधा अस्तित्व स्वतः ही समाप्त हो जाता है। यह कहानी बुंदेलखंड के रानीताल गांव की ही नहीं पूरे बुंदेलखंड की दास्तां है।
रानीताल छतरपुर जिले की बड़ा मलेहरा तहसील का एक गांव है। छतरपुर से लगभग साठ किलोमीटर दूरी पर बसा गांव है। रानीताल गांव के दो तालाब इस गर्मी में पूरी तरह सूख गए थे। गांव के पास ही बहने वाली नदी ने भी बुंदेलखंड की अन्य नदियों की तरह ही दम तोड़ दिया था। गांव के एक नलकूप में भी केवल शाम को ही थोड़ा-बहुत पानी आता था। गांव के दो कई सौ फिट गहरे कुएं केवल अपनी गहराई से भय पैदा करने के अलावा और कुछ नहीं करते। पाले ने कर्ज लेकर बोई गई अरहर और गेहूं की फसल को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। मध्यप्रदेश के कई गांवों ने तो विकास की रौशनी नहीं देखी पर रानीताल गांव की कहानी इस मायने में दर्दनाक हो जाती है कि यहां समृद्धि के बाद बर्बादी का सिलसिला शुरू हुआ। हाई स्कूल तक की शिक्षा देने वाला यह गांव अपने रहवासियों को इस संकट से निपटने का कोई भी पाठ नहीं पढ़ा पा रहा था। लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि रानीताल पुलिस चैकी में आखिर इस संकट के जिम्मेदार कौन लोगों के प्रति रिपोर्ट लिखाएं। हां बुंदेलखंड पैकेज पर राजनीति के दो समूह यहां जरूर खड़े दिखाए दिए। ठीक वैसे ही जैसे बाकी के बुंदेलखंड में दिखाई देते हैं। चाहे उत्तरप्रदेष का हिस्सा हो या मध्यप्रदेश का।
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आईआईटी की नौकरी छोड़ बुंदेलखंड के विकास की लड़ाई में शामिल हुए पर्यावरणविद् भारतेन्दु प्रकाश बताते हैं पलायन रोकना है तो खेती को ठीक करना होगा और इसके लिए सबसे पहले मिट्टी, पानी, को संरक्षित करने की जरूरत है। पारम्परिक जलस्रोतों की रक्षा के साथ ही नए तालाबों का निर्माण भी बेहद जरूरी है। बुंदेलखंड में केन-बेतवा जोड़ो परियोजना घातक सिद्ध होगी। इससे क्षेत्र में पलायन बढे़गा, विस्थापन होगा।
भारतेन्दु प्रकाश की गणना को जब रानीताल गांव पर लागू किया जाता है तो स्थिति सच ही दिखाई देती है। रानीताल गांव के बुजुर्ग षिवनारायण कहते हैं कि ऐसी स्थिति तो कभी नहीं बनी कि आधे गांव को काम के लिए बाहर जाना पड़ा हो। सूखे से तो किसी तरह निपट ही रहे थे, इस साल पाले ने भी रही-सही कसर पूरी कर दी।
गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता और छतरपुर में जैविक पद्धति से खेती कर रहे संजय सिंह कहते हैं कि जलवायु परिर्वतन का सबसे ज्यादा असर बुन्देलखण्ड पर हुआ है इसलिए युद्ध स्तर पर यहां जंगल को फिर से खड़ा करना होगा साथ ही तत्काल प्रभाव से उत्खनन रोकना होगा, नहीं तो कुछ ही समय पश्चात् यह क्षेत्र में सूखा स्थायी रूप लेगा और इस सूखे को कोई पैकेज खत्म नहीं कर पाएगा।
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