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गौरतलब है कि पारिवारिक-सामाजिक प्रताड़नाओं से कई बार बच्चे गुस्से में अपना घर-परिवार छोड़ देते हैं। कई बार स्कूल में दंड मिलने के कारण और कई बार मजबूरी में भी उन्हें ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं। घर से भागे ऐसे बच्चे या तो प्लेटफार्म नशे का शिकार हो जाते हैं अथवा बुरी संगत में फंसकर अपना जीवन तबाह करते हैं। एक गैर सरकारी संस्था ने जब भोपाल स्टेशन पर ऐसे बच्चों का अध्ययन किया तो पाया था कि अकेले भोपाल स्टेषन पर ही हर दिन चार बच्चे कहीं न कहीं से आते हैं।
इन बच्चों के बेहतर पुनर्वास के लिए काम कर रही है दिशा। दिशा एक तरह का आवासीय विद्यालय है। 2007 से संचालित हो रहे इस केन्द्र ने अब तक 290 बच्चों को उनतक पहुंचाया है। शिक्षा विभाग और बचपन निवसीड परियोजना के तहत बजरिया थाना परिसर में स्थित इस केन्द्र में फिलहाल चालीस बच्चे रह रहे हैं। यहां के हर बच्चे की कहानी एक-दूसरे से जुदा है, मार्मिक है।
विक्की किसी दूर गांव का नहीं प्रदेष की राजधानी भोपाल के ही बैरागढ़ का रहने वाला है। उसके पिता स्कूल में टीचर थे। बीमारी के चलते उनका देहावसान हुआ तो मां ने दूसरा घर बसा लिया। विक्की को दादी के सिवाय कोई सहारा नहीं था। दादी केवल पेंशन पर अपना गुजारा करती है। डेढ़ सौ रूपए में कहीं घर चलने वाला है, उस पर बीमारी। दादी को किसी ने बताया कि रेलवे स्टेशन पर एक छात्रावास है जहां बच्चे को रख सकते हैं। मजबूर दादी को विक्की को यहां छोड़ना पड़ा। विक्की यहां खुश है। वह पहली कक्षा में पढ़ता है। यहां उसके कई दोस्त बन गए हैं। विक्की भी अपने पिता की तरह ही टीचर बनना चाहता है। विक्की की तरह संदीप की कहानी भी बहुत मार्मिक है। संदीप के माता-पिता दोनों का देहांत हो गया। चाचा-चाची ने कुछ दिन तो ठीक से रखा फिर बात-बात पर मारना शुरू कर दिया। संदीप को पढ़ाई का बहुत चाव था, लेकिन काम के लिए उसका स्कूल जाना भी छुड़वा दिया। संदीप एक दिन घर से भाग गया। कई जगह भटकते-भटकते वह भोपाल पहुंचा और स्टेशन से दिशा सेंटर। संदीप यहीं पढ़ाई कर रहा है।
रीवा शहर से भटकते-भटकते भोपाल पहुंचे 12 वर्षीय अमित ने भी इस छोटी सी उम्र मे दुनिया की बड़ी ठोकरें खाई हैं। अमित की मां का स्वर्गवास हुआ तो पिता ने दूसरी शादी कर ली। पिता के घर में जब खाना-कपड़े से लेकर पढ़ना-लिखना दूभर हो गया तो दुर्व्यवहार से तंग आकर रायपुर में बड़ी मां से आसरा मांगने पहुंच गया। कुछ दिन वहां भी ठीक रहा। कुछ दिनों बाद एक आदमी के बहकावे में आकर उसके साथ ही काम करने लगा। पढ़ाई वहीं रूक गई। उसी आदमी के साथ एक दिन भोपाल आ गया। भोपाल आकर आदमी ने उसे स्टेषन पर ही छोड़ गया। जेब में पैसे भी नहीं थे। दो दिनों तक भोपाल शहर में भूखे पेट खाक छानी। वह व्यक्ति तो नहीं मिला मजबूरी में भीख मांगनी पड़ी। कुछ पैसे मिले तो जैसे-तैसे ब्रेड खरीद कर खाई। फिर तो भीख मांगने की जैसे आदत बन गई। अमित ने बताया कि एक दिन कुछ मीडिया वालों ने बात की और मेरी कहानी सुनी और मुझे यहां दिशा आवासीय स्कूल में छोड़ दिया।
दिशा सेंटर की प्रभारी सुश्री जमना ने बताया कि कई बार बच्चे कई कारणों से अपना घर छोड़ कर निकल जाते हैं। इनके भटककर गलत राह पकड़ने की बहुत आशंका होती है। हम कोशिश करते हैं कि ऐसे बच्चों को सही दिशा दे सकें। प्राथमिकता यही होती है कि ऐसे बच्चों के घरों की पहचान कर उन्हें उनके घर और परिजनों तक पहुंचा सकें।
दिशा सेंटर के शिक्षक दुर्गेश ठाकुर ने बताया कि वर्तमान में यहां चालीस बच्चे रहते हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे घर से भाग कर आए हैं। हमारी कोशिश है कि ज्यादातर बच्चों को उनके घर पहुंचा सकें और जिन बच्चों की पहचान नहीं हो पा रही है उन्हें बेहतर व्यवस्थाएं दे सकें।
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