जब व्यक्ति को अत्यधिक खुशी का अनुभव होता है तो वह नाचने लगता है. मुहावरा भी है ‘खुशी से नाच उठना.‘ लोग नाचते हैं, किन अवसरों पर देखिए... खुशियों भरे पारिवारिक आयोजनों में...प्रेम में, प्रेम से वशीभूत होकर तो भगवान भी नाचे. भक्त भी नृत्य करते हैं ईश्वर की आराधना में और सच्चे भक्त का एक गुण ‘नृत्य’ भी बताया गया. उस हर एक पल में जहां व्यक्ति सामान्य से थोड़ा अतिरिक्त खुश, आनंद में है, वह नाच रहा है. व्यक्ति ही क्यों ! नाचते तो परिंदे भी हैं, मोर का तो ऐसा अनुपम नृत्य है कि भगवान भी उसकी तरह नृत्य करने लग जाते हैं. जहां नृत्य हैं वहीं आनंद भी है, जहां यह नहीं है समझो खुशी भी नहीं है. आज ‘विश्व नृत्य दिवस’ (International Dance Day) पर यह कामना करना चाहिए कि हर एक व्यक्ति नाचे, उसे नाचना आए या नहीं आए, यह ऐसा काम है जिसे किसी भी सूरत में कोई भी कर सकता है. रूसी नर्तक रुडोल्फ नुरेयेव ने कहा भी है कि ‘जब तक आप नृत्य करते हैं तब तक आप जीवित रहते हैं.‘
तो इंसान नाच कब से रहा
है? कोई ठीक—ठाक अंदाजा
नहीं, लेकिन यह भाव उतना ही पुराना होगा जितनी कि मनुष्यता.
पौराणिक आख्यानों में शिव नाच रहे हैं. उनका तांडव रचना और विध्वंस का एक अद्भुत
प्रतीक बनकर हमारे सामने है. समुद्र मंथन होता है, अमृत निकलता है, पर सभी तो उसके
पात्र नहीं होते, विष्णु चुन-चुन कर देवताओं को अमृत पान करवाते हैं, और माध्यम
बनता है नृत्य. कृष्ण का तो इसमें जवाब ही नहीं है, वह न केवल खुद नाचते हैं, बल्कि पूरी सृष्टि को अपने नृत्य के जरिए आनंद में सराबोर कर देते हैं. कृष्ण
और राधा के प्रेम की अभिव्यक्ति का केन्द्रीय माध्यम ही नृत्य है, संगीत उसमें स्वभाविक तौर पर जुड़ा ही है. रासलीलाओं में नृत्य की झलक को हम
आज भी महसूस करते हैं. वेदों में हमें नृत्य का लेखा—जोखा मिलता है. एक पूरा नाट्य
शास्त्र है, जिसमें नृत्य भी है. देवताओं के दरबारों में तो नृत्य की एक पूरी
मंडली ही साकार होती है. दुनिया के सभी धार्मिक आख्यानों में किसी न किसी रूप में
नृत्य की एक परम्परा साथ—साथ चलती है.
थोड़ा और आगे आएं तो
मध्यप्रदेश के भीमबैठका में तकरीबन 9000 साल पहले बनाए गए भित्तिचित्रों में हमें
नृत्य किए जाने के साक्ष्य हमें मिलते हैं. इसमें हम पाते हैं कि कितने पहले
मनुष्य ने शिकार के साथ नृत्य की व्यस्थित व्यवस्था बना ली थी. और इसके बाद से
लगातार दुनिया के अलग—अलग कोनों में हमें नृत्य गायन मिलता है.
यूं तो हमें लगता है कि
दुनिया में जितनी तरह के लोग होते होंगे उतनी ही तरह का नृत्य भी होता होगा. हर एक
मनुष्य नृत्य का एक अलग फार्म रचता है जो औरों से जुदा होता है, लेकिन व्यवस्थित और शास्त्रीय तरीके से इसको देखा जाए तो दुनिया में हजारों
तरह के नृत्य पाए जाते हैं. भारत में इनकी संख्या कितनी होगी, यह पता करना अभी शेष
है. हमें गर्व करना चाहिए कि हमने अपनी संस्कृति में इतने ज्यादा नृत्यों को
संवर्धित किया है.
नृत्य केवल समाज के मन को
ही आनंदित नहीं करता है, उसे एक—दूसरे में बांधता भी है. आचार्य रजनीश
कहते हैं कि मैंने अपनी ध्यान विधियों में नृत्य को सम्मिलित किया है, क्योंकि ध्यान के लिए नृत्य के अतिरिक्त अधिक चमत्कारपूर्ण कुछ नहीं. तो इसके
फायदे तो अनगिनत हैं, पर यह कला लोक से विलुप्त होटी जा रही है.
इंटरनेट और टेलीविजन के
विकास के पहले के समाजों में सर्वाधिक रूप से पाए जाने वाला सामूहिक आयोजन नृत्य
ही हुआ करता था. भारत जैसे विविधता वाले देश में पानी—बानी बदलने के साथ ही
नृत्यों की विविधता भी खूब पाई गई. बस्तर से लेकर सूदूर आसाम तक और काश्मीर से
लेकर कन्याकुमारी तक कहां नृत्य नहीं था. यह बहुत ही दुखद है कि हम वो पीढ़ी हैं
जो इस संधिकाल में हैं जहां पर इस नए नवेले विकास ने इन सुखद परम्पराओं पर गहरा
आघात किया है. यह बेहद अफसोसजनक है कि जो परम्पराएं एक सामान्य रूप में समाज में
विद्यमान थी उन्हें आज की पीढ़ी एक अजूबे की तरह देख रही है. जो नृत्य की धाराएं
समाज में स्वाभाविक रूप से बहा करती थीं उनके लिए आज जतन किए जाते हैं, इसके बावजूद भी इस बात की कोई आशा नहीं की जा सकती कि वह अपने सामान्य रूप में
बचेंगी भी या नहीं.
जब पूरी दुनिया छह इंच की
स्क्रीन पर सिमट कर आ गई हो वहां पर ऐसा होना ही है. इंटरनेट, मोबाइल और टीवी ने इस विशाल और विविधता भरी दुनिया को बहुत छोटा और नीरस बना
दिया है. स्क्रीन पर सब कुछ है,
लेकिन वास्तव में तो कुछ
भी नहीं है. अब कोशिश यही होनी चाहिए कि दोबारा से नृत्य और संगीत की दुनिया में
वापस जाया जाए. यह न केवल समाज के लिए बल्कि हर एक व्यक्ति के लिए भी सुखद है.
सेहतयाब है. उसके मन और खुशी के लिए है. ऐसे मौकों की तलाश की जाए जहां पर
एक—दूसरे के साथ खूब थिरका जाए. बड़े—बड़े मौके ही जरूरी नहीं हैं, छोटी खुशियों को भी गीत—संगीत और नृत्य से हम बड़ा बना सकते हैं. क्या आप इसके
लिए तैयार हैं?
राकेश कुमार मालवीय
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