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आरिफ और सारस दोस्ती : ऐसा हुआ तो लोग मदद करने से भी डरने लगेंगे

 सारस और उसके दोस्त आरिफ का पहला वीडियो देखकर मैं तमाम लोगों की तरह सुखद आश्चर्य से भर गया था। बल्कि पहली बार तो यह लगा यह वास्तविक नहीं कोई फिल्मी दृश्य है। बाद में कुछ और माध्यमों से यह पता चला कि एक इंसान ने पक्षी की मदद कर दी और पक्षी ने उससे दोस्ती कर ली। कुछ और भी वीडियो देखे, कहीं भी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि कुछ गलत हो रहा है। यदि हो रहा होता तो कोई न कोई आवाज तो आती ही, उठती ही, पर ऐसा नहीं हुआ।

यह वही धरती है जहां पर तमाम धर्मों का उदय हुआ और यह देश जो पूरी दुनिया में सहिष्णुता की मिसाल माना गया। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है कि यहां की मिट्टी में पला बढ़ा कोई इंसान दूसरे इंसान या प्रकृति के प्रति कट्टर भी हो सकता है और यदि है तो वह हिंदुस्तानी है ही नहीं। यह वह धरती है जहां पर हमें भगवान महावीर की वह तस्वीर दिखाई देती है जहां एक ही तस्वीर में पशु-पक्षी और कई तरह के जानवर उनका उपदेश सुन रहे हैं। वह तस्वीर ही हो तब भी उसमें जो दिखाई दे रहा है वह इस संसार में अहिंसा, प्रेम, करूणा की अद्भुत मिसाल तो है ही। गांधी ने तो खैर बाद में अहिंसा को पूरी दुनिया में एक नए जीवंत तरीके से स्थापित किया ही। राम, कृष्ण, ईसा, बुद्ध, महावीर के मूल्य और  सिद्धांतों को समाज अपने ढंग से स्वीकार करता, अपनाता और आगे बढ़ाता है। वह कम ज्यादा हो सकते हैं, लेकिन यह समाज कानून-व्यवस्थाओं के अलावा भी उन मूल्यों से चलता है जो इस प्रकृति के हित में होती हैं, उसके अनुसार होती हैं। इसलिए बहुत महत्वपूर्ण यह होता है कि किसी भी घटना को इंसानियत के उन मूल्यों से भी तौला-परखा जाए। कानून तभी आता है जबकि कहीं अराजकता दिखाई देती है, लेकिन मानवीय मूल्य तो हर कदम साथ चलते हैं।

आरिफ और सारस की कहानी को देखें खासकर बाद की कहानी को देखें और उसमें घुसे अपने-अपने निहितार्थ को समझे तो इंसानियत के काम को थोड़ा सा धक्का लगता है, हालांकि कोई भी उसकी मदद को गलत नहीं कह रहा है, लेकिन गैरकानूनी तो फिर भी बताया ही जा रहा है, इंसानियत की नजर में यह भला काम है, पर कानून की नजर से गलत है, पर हर कानून या हर निर्णय न्याय ही हो, इसकी गारंटी भला कौन दे सकता है, तो सवाल आकर यहीं ठहर जाता है कि जिसे कानून अपराधी बना दे रहा हो उसकी मंशा क्या थी ? क्या सारस की मदद करना अपराध था ! एक घायल की सेवा करना अपराध था !  

इसके सबक तो ऐसे ही लिए जाएंगे कि कहीं भी बुरा दिख रहा हो और यदि वह कानून के खिलाफ हो तो उसकी मदद न करो। हम अक्सर देखते ही हैं कि कोई वीराने में सड़क पर किसी घायल की मदद नहीं करने को आगे नहीं आता कि कौन पचड़े में पड़े, पुलिस तो आकर सबसे पहले मदद करने वाली की ही कॉलर पकड़कर माजरा पूछेगी। ऐसे अनेक मामले हैं। हद तो यह भी है कि दिनों दिन मूल्यों को खोते समाज में कोई मदद करने को आगे भी नहीं आता है। कोई दो साल पहले नाले में गिरकर लगभग मौत के मुंह में पहुंची गाय को बचाने के लिए फोन करने पर वह लोग भी मौके पर नहीं आए जो सोशल मीडिया पर गौरक्षक होने का दावा करते फिरते हैं। उन्हें बचाने में मददगार बने बिलकुल आम आदमी, आम भारतीय, जिनके अंदर वास्तव में करूणा का तत्व मौजूद है।

यह करूणा भी हर भारतीय में भरी ही है, लेकिन उसे प्रश्रय देने की जगह जब कानून और व्यवस्था खानापूर्ति की नाम पर परेशान करने पर उतर आती है तो इससे प्रकृति की सत्ता को चुनौती मिलती है। सहजीवन पर सवाल उठने लगते हैं और इंसानियत पर चोट पहुंचती है। राजनीति जब इसमें अपनी-अपनी रोटियां पकाने लगती हैं तब तो हालात और भी बुरे हो जाते हैं।

बहरहाल कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने से कोई रोक नहीं है। और इस सलाह से भी आपत्ति नहीं है कि आरिफ को एक सूचना प्रशासन को देकर अपना फर्ज पूरा कर लेना चाहिए था, लेकिन जब सोशल मीडिया पर वह अपने तमाम वीडियो डाल ही रहा था और उसमें कहीं से भी कोई जबरदस्ती नहीं दिखाई देती हो तब उसने सोचा भी नहीं होगा कि ऐसा किया जाना चाहिए।

यह घटना देख पढ़कर कुछ ही दिनों पहले मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के एक टाइगर की तस्वीर भी जेहन में आई जिसमें एक टाइगर फांसी पर चढ़ा हुआ नजर आ रहा है। इसे देखकर ऐसा आभास हुआ कि उसे मारकर फांसी पर चढ़ा दिया गया हो। यह एक बहुत ही वीभत्स दृश्य था। टाइगर रिजर्व में तार बांधकर टाइगर के शिकार का यह दर्दनाक मामला था। जानवरों के साथ ऐसे दृर्व्यवहार के मामले भी अक्सर सामने आते हैं, और ऐसे मामलों पर सालों साल न दोषी पकड़ा पाते हैं और न ऐसे अपराधों को रोकते ही बनता है। सबको पता है कि जंगल कटाई को किस तरह से और कौन अंजाम देता है, भ्रष्ट व्यवस्था इस विनाश में किस तरह से मददगार बनती है उसकी भी कोई छुपी हुई कहानी नहीं है। आरिफ और सारस की इस ख़ूबसूरत दोस्ती को कानून नहीं इंसानियत के चश्मे से ज्यादा देखा जाना चाहिए।

राकेश कुमार मालवीय



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