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क्या बापू को अपनी मृत्यु का आभास हो गया था…?


 कहते हैं कि व्यक्ति को अपने आखिरी वक्त का अहसास हो जाता है. ऐसे वक्त में वह जो कुछ भी कहता—करता है, उससे इस बात के संकेत मिलने लगते हैं. हालांकि ऐसे संवादों में संयोग भी हो सकता है, क्योंकि इसका कोई पुख्ता आधार तो है नहीं, लेकिन बापू के आखिरी दिन यानी 30 जनवरी 1948 की घटनाओं और उनके कथनों में यह अहसास बार—बार आता है.

मोहन से महात्मा हुए बापू की प्रार्थना में गहरी श्रद्धा थी और उन्होंने यह भी कह दिया था कि उनकी अंतिम परिणिति किसी बीमारी से नहीं होगी. मनुबहन गाँधी बापू के अंतिम समय में उनके साथ रहीं और अपनी डायरी में उन्होंने अंतिम दिनों को दर्ज किया है. मनु ने लिखा बापू ने कहा था कि ‘यदि मैं किसी रोग से या छोटी सी फुंसी से भी मरूं तो तू जोर—शोर से दुनिया से कहना कि यह दम्भी महात्मा था. और यदि गत सप्ताह की तरह धड़ाका हो, कोई मुझे गोली मार दे, और मैं उसे खुली छाती झेलता हुआ भी मुंह से सी तक न करता हुआ राम का नाम रटता रहूं तभी कहना कि वह सच्चा महात्मा था.‘ और हुआ भी यही. बापू के मुख से आखिरी समय ‘हे राम’ ही था.

जैसे कि हमें पता है बापू का प्रार्थना पर गहरा यकीन था. उनके द्वारा शुरू की गई प्रार्थनाएं आज भी गांधी आश्रमों में नियम से चलती हैं. बापू खुद सुबह जल्दी उठकर अपने दिन की शुरुआत प्रार्थना से ही किया करते थे, लेकिन जो ऐसा नहीं कर पाता था, उससे वह दुखी भी हो जाया करते थे. 30 जनवरी को जब मनुबहन सुबह की प्रार्थना के लिए जाग नहीं सकीं तो वह खासे दुखी हुए.

उन्होंने दातुन करते हुए कहा कि... ‘मैं देख रहा हूं कि मेरा प्रभाव मेरे निकट रहने वालों पर भी उठता जा रहा है. प्रार्थना तो आत्मा को साफ करने की झाडू है, मैं प्रार्थना में अटल श्रद्धा रखता हूं, ऐसी प्रार्थना करना कोई पसंद नहीं करता तो फिर उसे चाहिए कि मेरा त्याग ही कर दे इसी में दोनों का भला है. आखिर में यह भी कहा कि ‘यह सब देखने के लिए भगवान मुझे अधिक न रखे मैं यही चाहता हूं.‘

एक दूसरा संयोग देखिए कि बापू अपने आखिरी दिनों में कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत चिंतित थे. 29 जनवरी की रात वह बैठे और कांग्रेस के उसके पुनरोद्धार के लिए कुछ बिंदु तय किए. 30 जनवरी की सुबह से ही कांग्रेस संविधान के मसविदे का संशोधन करने बैठ गए. और अपने सचिव प्यारेलाल जी को लिखा ‘कल रात मैंने कांग्रेस का मसविदा संविधान हरिजन में भेजने के लिए बना रखा है, उसे ठीक से देख लें और विचारों की जो कमी रह गई हो उसे पूरी कर दें. बहुत ही थके—मांदे मैंने उस तैयार किया है.‘

इस दस्तावेज में बापू ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए दस बिंदु भी सुझाए थे जो कि हर कार्यकर्ता को अपने जीवन में आत्मसात करने थे. इसमें खादी पहनने, मदिरापान नहीं करने, हर व्यक्ति से जीवंत संपर्क रखने, सांप्रदायिक सद्भाव,स्त्री पुरूष में भेदभाव खत्म करने, अपने काम का लेखा—जोखा रखने, साफ—सफाई से रहने, नई तालीम शिक्षा पद्धति को अपनाने, मताधिकार को प्रोत्साहित करने जैसे बिंदु शामिल थे. आज इन सभी बिन्दुओं की हालत केवल कांग्रेस में ही नहीं पूरी राजनीति में ही ख़राब है. केवल स्वच्छता के मामले में ही कुछ सुधर दिखता है, बाकि मुद्दों की हालत दिन ब दिन ख़राब ही होती गयी है, कांग्रेस पार्टी खुद भी खुद को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष कर रही है. 

एक और संयोग देखिए इसी दिन बापू से मिलने मौलाना रहमान भी आए थे. मौलाना रहमान ने सेवाग्राम के बारे में पूछते हुए कहा कि आप वहां जा सकते हैं, पर 14 को वापस लौट ही आएं. बापू ने कहा ‘हां 14 को तो यहीं रहूंगा फिर वह सब तो खुदा के हाथ में है, वह तो असमानी सुल्तानी बात है.‘

जैसे कि बापू हर दिन पत्र भी लिखा करते थे. मनुबहन ने अपनी डायरी में लिखा कि उन्होंने पूज्य किशोर लाल भाई को कल जो पत्र लिखा था, नकल न हो सकने के कारण वह बापू के कागज में ही पड़ा रहा गया. बापू को यह अच्छा नहीं लगा. मैंने सहज ही पूछा कि इसमें एक पंक्ति यह लिख दूं कि हम लोग दूसरी को वर्धा जाने वाले हैं तो बापू ने कहा ‘कल की कौन जानता है, अगर जाना तय ही हो जाएगा तो आज प्रार्थना में कह दूंगा.‘

बापू 125 बरस जीने की बात करते थे, लेकिन अपने अंतिम दिनों में अपनी इस बात पर भी वह दृढ़ नहीं रहे. देश की परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने यह संकेत दिए थे कि इन परिस्थितियों में उनकी 125 साल जीने की इच्छा नहीं है.

30 जनवरी को सरदार वल्लभ भाई पटेल महात्मा से मिलने आए थे और एकांत में उनकी चर्चा हो रही थी. मनुबहन ने अपनी डायरी में दर्ज किया... बापू और सरदार दादा बातचीत कर रहे थे...काठियावाड़ के बारे में भी चर्चा हुई. इसी बीच कठियावाड़ के नेता रसिक भाई पारिख और ढेबर भाई भी आ गए. उन्हें बापू से मिलना था. लेकिन आज तो एक क्षण खाली नहीं है. फिर भी मैंने उनसे कहा कि बापू से पूछकर समय तय किए देती हूं. बापू और सरदार दादा बातों में एकदम तल्लीन थे. मैंने पूछा तो कहने लगे ‘उनसे कहो यदि जिंदा रहा तो प्रार्थना के बाद टहलते समय बात कर लेंगे.‘

 


राकेश कुमार मालवीय



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