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कैसे बनेगा भारत का भविष्य, 14 लाख शिक्षकों के पद खाली


 विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर हमारे देश में शिक्षकों के तकरीबन चौदह लाख शिक्षकों के स्वीकृत पद खाली हैं ! देश में लाखों-करोड़ों पढ़े लिखे नौजवान नौकरी की तलाश में घूम रहे हैं, और भारत अपने जीवट से ब्रिटेन को पछाड़ते हुए पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन गया है, ऐसे में इन चौदह लाख पदों को एक झटके में भरा जा सकता है, लेकिन देश में बच्चों का भविष्य प्राथमिकता में नहीं लगता है, यही कारण है कि सरकारी स्कूल व्यवस्था को ‘राम भरोसे’ छोड़ दिया गया है, लम्बे समय से सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी तो यही इशारा करती है.

शिक्षक दिवस पर शिक्षकों के महत्त्व और समाज में उनके योगदान की जगह शिक्षा व्यवस्था की बदहाली की बात आपको अटपटी भी लग सकती है, लेकिन इसे करना इसलिए जरुरी लगता है क्योंकि बीते कुछ समय में शिक्षक शब्द के सम्मान में हम लगातार कमी पाते हैं, और देश के दूसरे प्रेसिडेंट सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन की तो भावना ही यही थी कि उनके जन्मदिन पर शिक्षकों का सम्मान हो.

ओड़िसा में एक शिक्षक पर 67 विद्यार्थियों का बोझ

हालत यह हैं कि दूरस्थ अंचलों में जहाँ कि सरकारी स्कूल ही अब भी शिक्षा के सबसे बड़े, और महत्वपूर्ण केंद्र हैं, वहां से आई तमाम रिपोर्ट भी बताती हैं कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है और उसकी वजह यह है कि कहीं न कहीं शिक्षकों की कमी के कारण एक शिक्षक के भरोसे तय अनुपात से ज्यादा विद्याथी हैं. बिहार की बात करें जहाँ कि शिक्षा का एक समृद्ध इतिहास रहा है, दुनिया में शिक्षा के इतिहास के सबसे पुराने विश्वविद्यालय जहाँ पाए गए हों वहां आज प्राइमरी स्कूल में एक शिक्षक के भरोसे 56 विद्यार्थी हैं, हायर सेकंडरी विद्यालयों में एक शिक्षक के भरोसे साठ विद्यार्थी हैं, ओड़िसा में एक शिक्षक पर 67 विद्यार्थियों का भार और उत्तरप्रदेश में 41 बच्चों का भार है, यह आंकड़े तब हैं जबकि पिछले एक-दो दशक में सरकारी स्कूलों का एक यह कथानक बना है कि उनमें बेहतर पढ़ाई नहीं होती, अच्छी शिक्षा केवल निजी स्कूलों में ही मिलती है.

क्या शिक्षा में भी गैर बराबरी होगी :

हमने यह मान लिया है कि गैर सरकारी स्कूलों में ही अच्छी पढ़ाई होती, सरकारी स्कूलों का कथानक यह बन गया है कि वे लापरवाही के केंद्र हैं. वहां पर बेहतर पढ़ाई नहीं होती है, इसलिए आज कोई भी आर्थिक रूप से सक्षम लोग अपने बच्चों को गैर सरकारी स्कूलों में ही दाखिल करवाना चाहते हैं, हम यह भी जानते हैं कि देश में सत्तर करोड़ लोगों को सस्ता राशन दिया जा रहा है, लगभग इतने ही लोग गरीबी रेखा के नीचे रोजी-रोटी का संघर्ष कर रहे हैं, इसलिए सस्ते राशन के साथ ही सस्ती शिक्षा दिया जाना भी उतना ही जरुरी है, लेकिन उसकी गुणवत्ता का बेहतर होना भी बहुत जरुरी है, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सबसे बड़ा आधार है शिक्षक.

यू डाइस की हालिया जारी रिपोर्ट का विश्लेषण बताता है कि सरकारी स्कूल में एक स्कूल पर औसतन 4.77 शिक्षक हैं, वहीँ प्राइवेट स्कूल में 10.70 शिक्षक अध्यापन कार्यों में लगे हैं. संख्या के नजरिये से देखें तो देश में 10,32,049 सरकारी स्कूल में 49,27,099 शिक्षक हैं, वहीँ 3,40,753 प्राइवेट स्कूलों में 36,47,674 शिक्षक काम कर रहे हैं. अब आप ही बताइए कि ऐसे में कैसे शिक्षक छात्र का अनुपात कैसे अपने आदर्श रूप में आ पाएगा. संविधान में शिक्षा बच्चों का अधिकार है, समानता और न्याय भी संवैधानिक भावना है.         

शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से मुक्त करें :

यह शिक्षा, शिक्षक और विद्यार्थी तीनों के साथ ही न्याय होगा कि शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से पूरी तरह से मुक्त किया जाये, शिक्षक का असल सम्मान तभी है जबकि वह अपना मूल काम सबसे ज्यादा प्राथमिकता में करेगा. वैसे तो शिक्षा के अधिकार कानून 2009  की धारा 27 में दिया गया है कि शिक्षकों से किसी भी प्रकार का गैर शैक्षणिक कार्य नहीं करवाया जाना चाहिए. चाहे वह चुनाव वाले काम में या जनगणना वाले काम इन सभी से शिक्षकों को दूर रखा जाएगा, लेकिन इसके बावजूद भी चुनाव में शिक्षकों की ड्यूटी निरंतर लगाई जाती है, दूसरे कामों के लिए भी इस कानून का खुलेआम उल्लंघन किया जाता है, यहाँ तक कि जूते-चप्पल की रखवाली करने तक में शिक्षकों की ड्यूटी लगाने की ख़बरें आई हैं ! क्या यह उचित है, क्या यह शिक्षक शब्द की गरिमा के साथ खिलवाड़ नहीं है कि उसकी ड्यूटी चाहे जहाँ लगा दें ?

शिक्षा के बिना नहीं आएगी असल खुशहाली

एक और मसला आया है और वह है स्कूल के अन्दर प्रबंधकीय कार्यों का. शिक्षकों को शैक्षणिक कार्यों के अलावा यह भी देखना होता है मिड डे मील ठीक मिल रहा या नहीं, उसका रिकॉर्ड ठीक जा रहा या नहीं, तमाम तरह के रिकॉर्ड को मेंटेन करने की जिम्मेदारी भी उनके ऊपर है, ऐसे में जबकि पर्याप्त प्रबंधकीय स्टाफ नहीं है तब यह सब काम भी उन्हें ही देखने हैं. संविधान की समवर्ती सूची में शिक्षा को रखा गया है, इसमें शिक्षकों की भर्ती को राज्य सरकारों के जिम्मे किया गया है, राज्य सरकारों को चाहिए कि वह अपने सरकारी स्कूलों में पर्याप्त रूप से शिक्षकों की भर्ती करें और पढ़ाई को सुनिश्चित कराएं, लेकिन कई राज्यों में लंबे समय से शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई है, अतिथि शिक्षकों और संविदा शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है, भारत के भविष्य के लिए यह उचित नहीं है, आज सबसे बड़ी जरुरत इस बात की है कि सरकार अपने स्कूलों में योग्य और पर्याप्त शिक्षकों की भर्ती करके देश के गरीब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करे.

 -  राकेश कुमार मालवीय


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