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Blog: इन दो तस्वीरों के बीच एक सुंदर कहानी है ..



...तो हुआ यह कि कल जब हम पर्यावरण दिवस पर हम सुबह की सैर पर निकले तो मौसम एकदम अच्छा था। पक्षियों की आवाज सुनते—सुनते जब हम थोड़ी दूर पहुंचे तो एक अम्मा मिली। वह डंडा टेककर चल रही थी और एक गडढ़े में से मिटटी खोदकर ला रही थी। हमने उससे यूं ही पूछ लिया अम्मा क्या करोगी मिटटी का। अम्मा ने कहा कि पेड़—पौधे लगाउंगी। बेला लगाउंगी। 

हमने पूछ लिया अम्मा बीज हैं तुम्हारे पास। आपको कुछ बीज चाहिए। चूंकि हमने घर में बहुत सारे बीज जमा कर रखे हैं। अम्मा ने भी सहज ही कह दिया दे दो। 

हमने कहा कल ला देंगे। हम अम्मा को जानते भी नहीं। पहले से कोई बात भी नहीं, बस एक बहाना मिल गया और बात हो गई। 

कल का वायदा पूरा करना था तो आज सुबह गांव से लाई गई लौकी को काटा गया। लौकी पूरी तरह सूख गई थी, काटने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। 20 मिनट आरी चलाने के बाद कट पाई। लौकी के अंदर से बहुत सारे सूखे बीज निकले। बीजों को लेकर निकल पड़े। 

अम्मा के घर का ठीक पता भी हमें मालूम नहीं था, बस अम्मा ने बोला था ​कि जिस घर के आगे फूल लगे हैं वही है। उस लाइन में केवल तीन ही तो घर हैं। दो टेंट हाउस के गोदाम हैं। परिवार के नाम पर तीन परिवार ही रहते हैं। हमने चांदनी के फूलों वाले उस घर के लोहे के गेट को बजाया तो दो—तीन बार में एक व्यक्ति निकल कर आया। हमने कहा अम्मा यहीं रहती हैं। उसने कहा हां, अम्मा के लिए बीज लाए हैं कल बोला था। हमने कहा। और उसको बीज दे दिए। अम्मा कुछ काम कर रही थीं, तो बस बीज देकर हम वापस हो लिए। 

कल वैक्सीन लगवाने के कारण अंजली को थोड़ी थकान हो रही थी, तो हम धीमे—धीमे कदमों से चलते हुए आ रहे थे। आधी दूर पहुंचे होंगे कि अम्मा का बेटा साइकिल पर आया और बोला अम्मा ने यह आम भिजवाए हैं। 

अब चौंकने की बारी हमारी थी, एक हरे रंग की पन्नी में हरे—हरे 12—15 कच्चे आम थे। एकदम ताजा टूटे हुए। इतने ताजा कि उनका सिरा चीखे से गीला हो रहा था। 

अम्मा ने कितनी ​जल्दी सोचा होगा। कितनी जल्दी आम तुड़वाए होंगे। कितनी जल्दी भिजवाए होंगे क्योंकि उसको भी हमारे घर का पता नहीं मालूम था। 


आम का छिलका बहुत मोटा है। अचार डालने के लिए एकदम बहुत अच्छा। हो सकता है कि कल परसों में अचार डल भी जाए। जब—जब यह अचार निकल कर थाली में आएगा अम्मा की भी याद आ जाया करेगी। 

कैसी अदभुत रिश्तेदारी बनी बीजों की। 


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