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BLOG: एक लाख स्कूल के बच्चों के पास नहीं प्रिय शिक्षक चुनने का विकल्प



राकेश कुमार मालवीय

आज शिक्षक दिवस है। देश के तकरीबन चौदह लाख स्कूलों के बच्चे अपने प्रिय शिक्षक को तरहतरह से शुभकामना दे रहे होंगे। किसी ने अपने प्रिय शिक्षक के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने के लिए घर के बगीचे से फूल तोड़कर दिया होगा, कुछ ने ग्रीटिंग कार्ड बनाकर दिया होगा। किसी भी आधारभूत सुविधा से ज्यादा बड़ी जरूरत शिक्षक का होना है। हम सभी के जेहन में अपनेअपने प्रिय या अप्रिय भी शिक्षक के छवि कैद जरूर होती है। पर देखिए कि देश की एक बड़ी विडंबना है कि देश के लाखों बच्चों के पास अपने प्रिय शिक्षक चुनने का विकल्प ही नहीं है, क्योंकि वहां पर उन्हें पढ़ाने के लिए केवल एक ही शिक्षक मौजूद है। एक ही शिक्षक के भरोसे पूरा स्कूल है, सारी कक्षाएं हैं, ऐसे में आप खुद ही सोच लीजिए कि हमारे देश के ऐसे स्कूल का क्या होने वाला है ? बिना शिक्षक के स्कूल कैसे चलने वाले हैं, भविष्य का भारत कैसे बनने वाला है ?

डाइस देश में शिक्षा व्यवस्था की आधारभूत व्यवस्था का एक रिपोर्ट कार्ड रखता है। यह कोई गोपनीय दस्तावेज नहीं है, यू डाइस नामक वेबसाइट पर जाकर आप खुद भी देश की शिक्षा व्यवस्था का साल दर साल लेखाजोखा हासिल कर सकते हैं। यह डेटा पूरी तरह सरकारी है, विश्वसनीय है। इसका सबसे ताजा आंकडा जो साल 1617 का है कहता है कि देश में तकरीबन 7.2 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां पर कि सिंगल टीचर मौजूद हैं। देश के 14,67, 680 कुल स्कूलों में यह संख्या तकरीबन 1,05,672 होती है। इससे पहले के साल में भी यह संख्या 7.5 थी। मतलब तेजी से विकास करने वाली, डिजिटल इंडिया बनाने वाली और अच्छे दिन लाने वाली सरकार भी प्वाइंट तीन प्रतिशत की कमी कर पाई है !

गुणवत्ता एक अलग सवाल है और आधारभूत संरचनाओं का विकास इसका दूसरा पक्ष है। पिछले सालों मे शिक्षा का अधिकार कानून आ जाने के बाद संरचनात्मक विकास पर बेहद जोर रहा है, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षण पर यह बातचीत शून्य है। इसे आप केवल खबरों की हेडलाइन पढ़कर समझ सकते हैं, जो केवल यह बताती हैं कि स्कूल में कमरा नहीं है, शौचालय नहीं बना है, मध्याहन् भोजन खराब है या ज्यादा गहराई में गए तो भवन बनाने में घपले की खबर निकलकर सामने आ जाएगी।

स्कूली शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की सबसे बड़ी इकाई केवल और केवल शिक्षक है, शिक्षक स्कूल ​सुधारने या स्टूडेंट को सुधारने का काम ही नहीं करता वह समाज को सुधारता है, देश को सुधारता है, आप केवल एक पल को सोच ​लीजिए जिन विद्यालयों में केवल एक शिक्षक नियुक्त होता होगा, उसमें और छड़ी लेकर जानवरों के पीछे जा रहे चरवाहे मे क्या कोई अंतर हो सकता है ? क्या चरवाहे का काम और शिक्षक का काम एक जैसा हो सकता है, यह बात थोड़ी कड़वी है और इसकी तुलना करना बेहद गलत है, लेकिन मैं यह चाहता हूं कि यह बात आपको अंदर तक चुभे और आप सरकार से यह मांग करें कि इन एक लाख से ज्‍यादा स्कूलों में जल्दी से जल्दी शिक्षकों के व्यवस्था करें। कम से कम अगले साल जब यह यू डाइस अपनी रिपोर्ट जारी करे तो इसमें केवल प्वाइंट तीन प्रतिशत की शर्मनाक कमी नहीं आए इसमें कम से कम पूरे तीन प्रतिशत की कमी तो जरूर आनी चाहिए।

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