सैकडों सालों से
मेरे सीने में
बेशुमार दौलत
धरती के ठंडा होते जाने से
मनुष्य के कपडे पहनने तक
जिसे हम कहते हैं
सभ्यता का पनपना
और इसी सभ्यता के पैमानों पर
सभ्यता को आगे बढाने के लिए
हम होते जाते हैं असभ्य ।।
हां मैं मलाजखंड
मेरी अकूत दौलत
इसी सभ्यता के लिए
मैंने कर दी कुर्बान
अपने सीने पर
रोज ब रोज
बारूद से खुद को तोड तोड
खुद बर्बाद होने के बावजूद
तुम इंसानों के लिए ।।
पर यह क्या
मेरी हवा
मेरा पानी
मेरा सीना
मेरे पशु
मेरे पक्षी
मेरे पेड्
मेरे लोग
जिनसे बनता था मैं मलाजखंड
ऊफ
ऐसा तो नहीं सोचा था मैंने
मेरे साथ बर्बाद होंगे यह सब भी
हां यह जरूर था
कि मैंने दी अपनी कुर्बानी
लेकिन वह वायदा कहां गया ।।
मलाजखंड 2
मलाजखंड में रोज दोपहर
या कभी कभी दोपहर से थोड्ा पहले
एक धमाका
सभी को हिला देता है
इस धमाके से हिलती हैं
छतें, दीवारे,
लगभग हर दीवारों पर
छोटी बडी लहराती दरारें
यह दरारें मलाजखंड तक ही नहीं हैं सीमित
दरारों से रिस रहा पीब
मलाजखंड के मूल निवासियों
का दर्द बयां करता है
पशु पक्षियों
जानवरों की सांसें
केवल हवा ही नहीं निगलती
उसके साथ होती है खतरनाक और जानलेवा रेत
उफ
मैं मलाजखंड
मैंने दुनिया को अपना बलिदान दिया
और दुनिया ने मुझे ..........।
मलाजखंड 3
मलाजखंड की धरती आज खिलाफ हो गई है
अपने ही खिलाफ
अपनी ही सुंदरता, अपनी ही समदधता के खिलाफ
कौन होना चाहता है ऐसा
पर हां, मलाजखंड की धरती कर रही है ऐलान
हे इंसान, तुमने क्या कर दिया।
@ राकेश कुमार मालवीय
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