हां
हर खबर की किस्मत होती है
ठीक उसी तरह जिस तरह
इंसान अपनी हाथों की लकीरों में खोजते हैं
भविष्य के गर्त की तस्वीरें
पर कहा तो यह जाता है
हर आदमी अपनी किस्मत लेकर पैदा होता है
ठीक उसी तरह
खबर की भी किस्मत होती है।
खबर कितनी अच्छी है
उससे मतलब नहीं है ज्यादा
अदद तो यह है कि
किन तारीखों में गढ़ी जा रही है वह
और उस मौसम का मिजाज कैसा है
मौसम भरा है या खाली विज्ञापनों से
अच्छी-अच्छी खबरें भी
ठसाठस भरे विज्ञापनों के बीच
टीसी से डीसी, डीसी से सिंगल
और कभी-कभी तो
पन्नों के बाहर भी हो जाती हैं आसानी से।
यह भी उतनी ही बुनियादी किंतु सच बात है कि
खाली मौसम में खबरों की टांग खींचकर
ग्राफिक्स, प्वांइटर, सबहेड, बॉक्स और कार्टून के जरिए
किया जाता है लंबा
पर ऐसे दिन कम ही आ पाते हैं आजकल
पन्नों पर बैठे लोगों को भी पता है
कौन सा दिन, मौसम है खाली और भरा
जब उन्हें करनी है कम और ज्यादा मेहनत
मैं यह पूरे दावे के साथ कह सकता है
हर खबर की किस्मत होती है
ठीक उसी तरह
जिस तरह समाज में किसी के पास
पीला और नीला राशन कार्ड है
यह कार्ड उनकी गरीबी,
भुखमरी, लाचारी और बेबसी का सबूत है
अफसोस की बात तो यह भी है कि
ऐसे लोगों की खबरों की किस्मत में भी
ऐसे ही नीले-पीले कार्ड जड़े हैं
कई दिनों के इंतजार के बाद
लाइन में खड़े-खडे
या कि
पेंडिंग न्यूज की लिस्ट में पड़े-पड़े
खुद ब खुद दम तोड़ देती हैं खबरें
ठीक उसी तरह जिस तरह
भूख से हर दिन दम तोड़ देते हैं बच्चे।
राकेश मालवीय
1 टिप्पणियाँ
पुनष्चः अब देखिए हिन्दी की-बोर्ड के वर्चस्व के चलते यहां वर्तनी की कितनी गलतियां हैं, खैर! आप समझ सकते हैं, फिर कलम के पक्ष में लिख रहे हो न