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बस चल रही है...


सुबह बस में सवार हूं। बोनट के पास की सीट मिली है। सामने शंकर भगवान की प्रतिमा। ताजी माला गले में लिपटी हुई। उसके ठीक ऊपर 786 और मस्जिद का स्टीकर चिपका है।  कहीं मस्जिद में शिव हैं क्या। नहीं मस्जिद में नहीं हैं। उनके बीच भारत का झंडा है, तिरंगा। नजर ऊपर जाती है तो वहां कान्हा जी का स्टीकर है। आइड साइड में दो love वाले स्टीकर है। ड्राइवर का नंबर लिखा है। ड्राइवर सीट के ऊपर एक और नंबर के साथ सूचना है पीलिया की दवा दी जाती है। सामने एक डब्बा लगा है। उसमें म्यूजिक सिस्टम है। ड्राइवर के ऊपर एक पंखा लगा है और पीछे आग बुझाने का यंत्र रस्सी के सहारे बांध दिया गया है। बस हिंदुस्तान का चेहरा है। पता नहीं किसी हिन्दू की है या मुसलमान की। चलाने वाले का धर्म हिन्दू मुसलमान होगा या मुसाफिर को ठिकाने पर पहुंचाना ही उसका धर्म होगा। ड्राइवर आते गए होंगे अपने अपने हिसाब से स्टीकर भी चिपकते गए होंगे। न यात्री स्टीकर देखकर बस में सवार हुए होंगे न कंडक्टर ने किसी को इस आधार पर उतारा बैठाया होगा। बस रफ्तार से चल रही है। कुछ देर में ड्राइवर संगीत बजा देते हैं।  सात अजूबे इस दुनिया में आठवीं अपनी जोड़ी गीत बज उठता है। बीच बीच में बस का हार्न संगीत के साथ बज उठता है। बस चल रही है।

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