पाकिस्तान को जो साजो-सामान अफगानिस्तान में रूस के खिलाफ इस्तेमाल करने के नाम पर अमेरिका द्वारा उपलब्ध कराया गया था, पाकिस्तान ने उसका खुलकर इस्तेमाल अपनी पूर्वी सीमा यानि कश्मीर में घुसपैठ के रूप में किया और उसके इस दुस्साहस की परिणिति कारगिल युद्ध के रूप में हुई थी। अपनी हार के बावजूद उसने आतंकवाद के माध्यम से एक किस्म का अपरोक्ष युद्ध भारत के विरुद्ध छेड़ दिया। दूसरी ओर मादक दवाओं और हथियार तस्करी करने वाले गिरोहों को सहायता देकर उसने भारत में आंतरिक आतंकवाद को भी बढ़ावा दिया।
सन् 1992 के दंगों के बाद से मुस्लिम धर्माधों को भारत के भीतर भी पैठ जमाने में सफलता हासिल होने लगी और सन् 2002 के गुजरात दंगों ने तो जैसे उन्हें मनचाही मुराद ही उपलब्ध करा दी थी। सिमी जैसे संगठन अपने निर्माण के उद्देश्य से भटक कर अवांछित गतिविधियों में लगे और इंडियन मुजाहदीन ने हिंसा को ही अपना हथियार बना लिया।
कुछ वर्षो पूर्व तक हम बहुत गर्व से यह कहते थे कि भारत में विदेशी आतंकवादी आतंक मचा रहे हैं, लेकिन एक भी भारतीय युवक किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय इस्लामी आतंकवादी समूह का सदस्य नहीं है। मगर अब स्थितियां बदल रही हैं। आईएसआई एस में भारतीय नवयुवकों की मौजूदगी वास्तव में गंभीर चिंता का विषय है।
अलकायदा को अभी तक हम दुनिया का सबसे खुंखार, नृशंस एवं खतरनाक आतंकी संगठन मानते थे। लेकिन आईएसआईएस ने इन तीनों ही मामलों में अलकायदा को बहुत पीछे छोड़कर मध्ययुगीन नृशंसता को अपना लिया है। यह संगठन सार्वजनिक तौर पर विरोधियों के सिर ही कलम नहीं कर रहा है बल्कि इसने अन्य धर्मावलंबी महिलाओं, लड़कियों और बच्चों की सार्वजनिक नीलामी को अंजाम देकर पूरी मनुष्यता को कलंकित किया है।
परंतु इससे जुड़ी एक बड़ी चिंता यह है जहां अलकायदा में भर्ती होने वाले युवा अल्प शिक्षित थे वहीं आइ एस आई एस के प्रवेश लेने वाले अनेक युवा अत्यंत उच्च शिक्षित हैं और इतना ही नहीं सीमित संख्या में ही सही युवतियां भी इस आतंकवादी संगठन की सदस्य बन रही हैं।
जारी : साभार चिन्मय मिश्र
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