अक्सर लगता है कि
जिंदगी ठहर गई है,
चलते-चलते हवा रुक गई हैं
थम गए हैं ट्रेन के पहिए
आकाश में रुक गया है बादलों का वेग
परिंदों के परों में नहीं है गति
और बड़े-बड़े अहंकरी पत्थरों ने रोक लिया है पानी का प्रवाह
लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता
दरअसल जो दिखता है
उसके पीछे भी चल रही होती है एक कहानी
जिंदगी अपनी रफ्तार से दौड़ती
हैहवा में शून्यता सी जरूर लगती है
ले·िन वह नि·ल चुकी होती है फिर वापस आने को
बादल भी ऊमड़-घुमड़ ·र दौड़ रहे होते हैं
ठीक उस आ·ाश में जो हमारी आंखों को सीधे नजर नहीं आता
परिंदे परख लेते हैं मौसम की नजाकट और निकल पड़ते हैं
दूसरे जहां में खुद को बचाने ke लिए
पानी लगातार मुक्के मार रहा होता है पत्थरों के सीने पर
जमीन फाड़कर निकल पड़ती हैं धाराएं
क्योंकी ना बादल रुकते हैं,
ना पंछी रुकते हैं,
हवा बहती है हरदम और पानी संघर्ष करता है अनवरत
हां वक्त जरूर लगता है
एक बीज को धरती से निकलकर आकाश तक जाने में...।
- राकेश मालवीय
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