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क्या रेप रोक पाने में कारगर होगा एमपी का फांसी फार्मूला




मध्यप्रदेश कई मामलों में पहले नंबर पर रहने में यकीन करता है और रहता भी है। अब महिलाओं के साथ अपराध के ही मामलों को लें। पिछले कई सालों से मध्यप्रदेश में बच्‍चों और महि‍लाओं पर अपराध के मामलों में अव्‍वल है।  अब मप्र ही पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है ​जहां बलात्कारियों को मृत्युदंड की सजा दी जाएगी। 

मध्यप्रदेश में अगले साल चुनाव हैं, स्‍वाभावि‍क रूप से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी सक्रियता तेज कर दी है। वह ऐसा कोई भी खाली स्पेस नहीं छोड़ना चाहते जहां कि विपक्ष उनको घेर सके। पिछले दिनों जब प्रदेश के स्‍थापना दि‍वस के दि‍न राजधानी भोपाल के बीचोंबीच बसे महाराणा प्रताप नगर में एक गैंग रेप का मामला अंजाम दि‍या गया तो चौहान के प्रशासन और कानून व्यवस्था को लोगों ने जमकर कोसा। 

इसके बाद सरकार पर बलात्‍कार के खिलाफ कुछ ठोस करने का दबाव बना हुआ था। इस बात पर बहुत चिंतनमनन किया गया कि क्या बलात्कारियों को मृत्युदंड दिया जाना चाहिए ? क्या इससे रेप पीड़ितों की हत्या की आशंकाएं और नहीं बढ़ जाएंगी ?
 
अंतत: रविवार को छुट्टी के दिन अपनी कैबिनेट बुलाकर इस निर्णय को मंजूरी दे दी गई। अब इस पर आगे का रास्‍ता साफ कि‍या जाएगा। देखना यह होगा कि क्या सचमुच मृत्युदंड के प्रावधान से प्रदेश में बलात्कार के मामलों में कमी आएगी ?

बच्चों के साथ बलात्कार समाज का एक वीभत्स चेहरा सामने लाते हैं। किसी राह चलती लड़की के साथ गैंगरेप भी अपराध का एक क्रूरतम चेहरा है। इन दो मामलों में समाज तो कठघरे में खड़ा होता ही है लेकिन चूंकि कानून और व्यवस्था सरकार का सीधा मसला है तो जिम्मेदारी सीधे तौर पर सरकारों पर ही आती है। इससे निपटने के लिए एक सख्त कानून की जरूरत लगती है, पर क्या हमारे देश में ऐसे अनुभव रहे हैं जहां सचमुच कानून के डंडे से अपराधी खौफ खाते हों। शायद नहीं क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि अपराध के आंकड़े तो लगातार ही बढ़ते जा रहे हैं। अपराध की नयीनयी शक्लें सामने आ रही हैं। इतनी कि वह हमारी सोच और समझ के भी परे ति‍लस्‍मी कथाओं की तरह हैं।

राष्टीय अपराध अभिलेखागार की रिपोर्ट के मुताबिक मप्र बच्चों के साथ अपराधों के मामले में पहले पायदान पर है। शांति का टापू करार दिए जाने वाले इस प्रदेश में बच्चों के साथ अपराध के 15,085 मामले दर्ज किए गए हैं। यह स्थिति और गंभीर इ​सलिए मानी जानी चाहिए क्योंकि मध्यप्रदेश में पिछले 1 दशक में बच्चों पर होने वाले अपराध में 305 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इनमें सबसे ज्यादा 42 प्रतिशत मामले अपहरण के हैं। 71 फीसदी अपहरण भी लड़कियों का ही हुआ है। बच्चों के साथ अपराध के मामले में दूसरा नंबर उत्तर प्रदेश का है जहां बच्चों के साथ अपराध के 14,835 मामले दर्ज हुए हैं। तीसरे नंबर पर देश की राजधानी दिल्ली है जहां कि बच्चों पर अपराध के 9,350 मामले दर्ज हुए हैं। 

यही रिपोर्ट बताती है कि मध्यप्रदेश में बच्चों के साथ बलात्कार के 2,352 मामले दर्ज हुए हैं, दस वर्ष पहले 870 मामले दर्ज हुए थे। तुलनात्मक रूप से बलात्कार के मामलों में 170 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सोचिए आंकड़ों का यह विकास हमें क्या दिखाता है। और क्या सोचने पर मजबूर करता है।  

केवल बच्चे ही क्यों, महिलाओं के साथ अपराध के मामलों में भी स्थिति क्या है इन आंकड़ों में देखिए। मप्र के अंदर 2006 में महिलाओं के साथ अपराध के 14319 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2016 में बढ़कर 25731 हो गए। तकरीबन अस्सी प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। महिलाओं के अपहरण के मामलों में सबसे ज्यादा 630 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। मप्र में 2006 में महिलाओं के साथ बलात्कार के 2900 मामले दर्ज किए गए थे 2015 में यह बढ़कर 5071 तक जा पहुंचे। 

यह सभी आंकड़े एनसीआरबी की रिपोर्ट के हैं। यह सभी दर्ज मामले हैं, कई अध्ययन इस बात की ताकीद भी करते हैं कि महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार के सभी मामले कईकई कारणों से दर्ज नहीं करवाए जाते हैं। भोपाल के ताजा गैंगरेप मामले में भी पुलिस का रवैया यह बताता है कि ऐसे मामलों को दर्ज करने में बड़ी मुश्किल आती है, पुलिस आसानी से मामले दर्ज नहीं करती है।

क्या इन परिस्थितियों में फांसी का प्रावधान क्या सचमुच स्थितियों को ठीक करेगा ? बड़ा सवाल यह है कि जिसपर सचमुच कैबिनेट में भारी मंथन हुआ भी कि क्या इससे बलात्कार के बाद हत्या के मामले नहीं बढ़ जाएंगे ? क्या कोई भी कठोर कानून अपराध के मामलों को कम करने में कामयाब हुआ है। यदि सचमुच यह बलात्कार रोकने का रामबाण फार्मूला है तो इसे केवल 12 साल की उम्र और गैंगरेप तक ही सीमित क्यों किया जा रहा है ? क्या बाकी के रैप को स्वीकार किया जा सकता है ? इसे अमली जामा पहनाए जाने के बाद इस कानून के दुरूपयोग रोकने के भी क्या सिस्टम होंगे ? क्या इसके लिए जांच व्यवस्था को भी उसकी स्तर पर पैना बनाया जाएगा ? क्या न्याय व्यवस्था किसी भी निरपराधी को निर्दोष करार देने की पूरीपूरी गारंटी देगी ?

सवाल केवल इतना भर नहीं है। ऐसे मामलों को रोकने के लिए दूसरे मोर्चों पर क्या तैयारी है, वह तो दिखती ही नहीं। हमारी नैतिक शिक्षा और मूल्यों के तानेबाने तो हर स्तर पर बिखर ही रहे हैं, इंटरनेट की ताकत का दुरूपयोग भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। दिन ब दिन सस्ते डेटा पैकेज देती कंपनियां हर हाथ में इंटरनेट तो पहुंचा रही हैं, पर इस बात पर क्या कोई रोकटोक है कि उसमें देखा क्या जा रहा है। कितनी ऐसी साइट्स को ब्लॉक कर पाने में सक्षम हुए हैं, ​जो समाज के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो रही हैं। यदि सचमुच समाज से इस कलंक को धोना है तो क्‍या फांसी ही उसका वि‍कल्‍प हो सकती है ?

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