सुविधाओं की दुनिया में साइकिल भले ही
गरीबी रेखा से नीचे चली गई हो, पर
इसकी हैसियत को कम आंकने की गलती नहीं कीजिए। एक छोटी सी साइकिल देश में बड़ा
संदेश दे रही है। संदेशवाहक हैं राकेश कुमार सिंह। वह पिछले दो सालों में दस राज्यों से
होते हुए सोलह हजार किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं। रास्तों में आए पड़ावों में वह
लोगों से संवाद करते हैं , इस सफर में वह तकरीबन चार लाख लोगों से
मिल चुके हैं। यह यात्रा समाज में लैंगिक भेदभाव के खिलाफ बिगुल फूंकती है। अपने
एक खास लिबास में एक साइकिल पर अपनी जरूरत भर का सामान ओर लिंग आधारित भेदभाव के
खिलाफ झंडा लिए चल रहे राकेश का हौसला बुलंद हैं। उनका दावा है कि जब तक वह
चाहेंगे इस यात्रा को जारी रखेंगे, इस
कठिन दौर में जब सचमुच लोगों के सोचने—समझने और काम करने का दायरा संकुचित
होता जा रहा है यह पहल सचमुच संबल देती है।वह पिछले कुछ दिनों से मध्यप्रदेश की
राजधानी भोपाल में हैं. यहां वह अलग-अलग समूहों से बातचीत कर रहे हैं.
राकेश सिंह मूलत: मीडिया के पेशे से
हैं। तकरीबन दस साल तक वह सीएसडीएस के साथ भी जुड़े रहे। इस बीच उन्होंने एक किताब
भी लिखी जिसे बीबीसी ने साल की दस बेहतर किताबों में शामिल किया। साल 2013 के
अंतिम सप्ताह में वह एक अध्ययन के सिलसिले में एसिड अटैक से संघर्ष कर रहे लोगों
से लंबे समय तक जुड़े रहे। इस दौरान उन्होंने ऐसे लोगों के साथ लंबा वक्त बिताया
और पाया कि एसिड अटैक पीड़ितों में 99 प्रतिशत महिलाएं ही हैं। उन्हें केवल एक
पुरुष ऐसा मिला जो एसिड हमले का शिकार हुआ था। यही बिंदु एक सोच के रूप में सामने
आया कि समाज में लिंगभेद आधारित स्थितियां इतनी भयावह क्यों हैं
दरअसल लिंगभेद शुरू कहां से होता है ?
एक व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे समाज के रीति—रिवाज और रहन—सहन और एक—एक गतिविधि में इसे इस तरह से ठूंसा
गया है कि वह सामान्य दृष्टि से तो असहज लगती ही नहीं हैं। अन्याय और भेदभाव की इस
प्रक्रिया को इतना सामान्य बना दिया गया है कि उसके खिलाफ कोई आवाज तक नहीं उठ
पाती है। राकेश कोई आंकड़े प्रस्तुत नहीं करते, वह किसी बड़े विचारक की तरह बात भी नहीं करते। उनके कुछ सामान्य से
सवाल हैं, जो
उन्होंने अपनी टीशर्ट पर लिख रखे हैं। वह कहते हैं कि मैं तो वह पाठशाला खोजने
निकला हूं जहां कि बलात्कारी पैदा होते हैं, जहां कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार करने वाले पैदा होते हैं, जहां कि दहेज लोभी बनाए जाते हैं। और
इन सवालों का जवाब भी वह बहुत हंसकर देते हैं कि उन्हें अपने सोलह हजार किलोमीटर
के सफर में ऐसे कोई खास पाठशाला तो अब तक नहीं मिली है। इस जवाब में उनका एक संदेश
भी है जो हमें भीतर तक चुभता है कि हां, ऐसा व्यवहार किसी खास जगह नहीं सिखाया जाता, वह तो हमारे आसपास ही चल रहा होता है, हम में से ही कुछ लोग ऐसा करते हैं।
जब किसी एक साल की बच्ची के खिलौनो में
खिलौना सिलेंडर निकलता है तब वह उसे किचन में रखे 14 किलो के सिलेंडर से खुद को
जोड़ लेती है, जब
उसके कपड़ों पर टोंकना शुरू कर दिया जाता है वह समझ जाती है कि मुझे कैसे कपड़े
पहनना है या कैसे नहीं पहनना है,
जब उसका रिश्ता तय कर दिया जाता है तो वह समझ जाती है कि वह एक पराई
वस्तु है, और
बकायदा उसका वस्तु की तरह दान भी तय कर दिया जाता है जिसे हम कन्यादान कहते हैं।
हमारे यहां तो बकायदा कन्यादान की सरकारी योजनाएं तक हैं, सरकारें भी मानती हैं कि उनके राज्य की
कन्याएं दान की वस्तु हैं।
और जब वह दूसरे घर जाती है तब भी उसे
एक अजीब से व्यवहार का सामना करना पड़ता है। अपनी लंबी यात्रा में उन्होंने देखा
है कि देश में अब भी कई इलाके की महिलाओं को नहीं पता है कि सूरज की रोशनी का रंग
कैसा होता है, क्योंकि
उनके माथे पर तो हाथ पर लंबा घूंघट पड़ा हुआ है।
यही नहीं उसका पति जब मर जाता है तो बकायदा उसका श्रंगार कर बाल्टी भर पानी
डाला जाता है। वह एक कपड़े में बहुत ही असहज स्थिति में घर के एक कोने में अपने
दिन गुजारती है। इस भारतयात्री का एक छोटा सा सवाल है चलिए मान लेते हैं कि रीति—रिवाज, परंपरा और धर्म के नाम पर यह कठिन रिवाज सही भी हैं, बस केवल यह जवाब
दे दीजिए कि यही रीति—रिवाज
मर्दों के लिए क्यों नहीं हैं !
‘कौन
है राकेश कुमार सिंह’
बिहार के छपरा जिले के छोटे से गांव तरियानी में जन्में राकेश
कुमार सिंह समाज में लैंगिक भेदभाव मिटाने के मिशन पर निकले हैं। उन्होंने मार्च 2014 से साइकिल यात्रा करते हुए तमिलनाडु, पण्डुचेरी, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आन्धप्रदेश, उड़ीसा, बिहार
और मध्यप्रदेश की ज़मीं को स्पर्श किया है और इन राज्यों में लैंगिक समानता के साथ
सह-अस्तित्व और सह-जीवन का सन्देश लोगों तक पहुंचा चुके हैं। उनकी इस यात्रा का
मकसद पुरूष-स्त्री के बीच ही नहीं बल्कि तीसरे समलैंगिक समूहों के बीच असमानता को
पाटना है। उन्होंने पिछले दो साल में दस राज्यों में यह सन्देश देते हुए 16000 किलोमीटर की यात्रा तय की है।
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