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झीरम घाटी नक्सली हमला: अंदाजा नहीं था इतनी बड़ी घटना है


ऐसी खबरें आती रहती थीं ! कोई नई बात तो नहीं थी नक्सली हमला। सितम्बर के महीने से मई तक लगभग 9 माह गुजार ही लिए थे रायपुर में। एक हिंदी साइट के लिए पूरे छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी निभाते हुए एक अच्छा खासा नेटवर्क भी बन ही गया था। नक्सली हमलों की खबर पर सबसे ज्यादा नजर रखनी होती थी। दो साल पहले मई के महीने में केलेण्डर पर 25 तारीख टंगी थी. लगभग साढ़े पांच बजे इंटरकॉम पर जोशी सर की आवाज थी “बॉस नक्सल अटैक जुआ है,  थोड़ी देर में खबर फाइल कर रहा हूं.... अलर्ट चला दो।“ 

हमेशा बेहद ऊर्जा में रहने वाले जोशी सर प्रिंट कि जिम्मेदारी सँभालते हुए भी हमारे लिए तत्पर रहते थे। आॅनलाइन पत्रकारिता में सबसे तेज और सबसे पहले सूचनाएं पहुंचाने में वह इस बार भी मददगार साबित हो रहे थे। एक छोटी सी खबर बनाकर उन्होंने फाइल की। इस खबर को एडिट करते हुए मैंने जरा भी नहीं सोचा था कि अगले कुछ घंटों में जो कुछ सामने आने वाला है वह कितना भयानक होगा।

कांग्रेस परिवर्तन यात्रा निकाल रही थी। नवम्बर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मददेनजर गुटों में बंटी कांग्रेस इस यात्रा में एकता दिखा रही थी। नंदकुमार पटेल का मिलनसार व्यक्तित्व कांग्रेस में नयी ऊर्जा लाने में कामयाब होता दिख रहा था। अलग- अलग इलाकों से गुजर रही कांग्रेस की यह यात्रा नक्सलियों के गढ़ से गुजर रही थी। 25 मई को नंदकुमार पटेल उनके बेटे दिनेश पटेल दिग्गज कांग्रेसी विद्याचरण शुक्ल बस्तर टाइगर महेन्द्र कर्मा और बहुत सारे नेताओं के साथ यात्रा पर थे। अजीत जोगी भी उस आखिरी सभा में थे, लेकिन अपने पैरों के कारण वह सड़क मार्ग से लंबी यात्राएं नहीं कर सकते हैं। इस कारण हवाई मार्ग से वह उस सभी से वापस लौट आए।

खबर थी कि नक्सलियों ने हमला कर दिया और उन्होंने नंदकुमार पटेल को अगवा कर लिया है। टीवी पर भी स्क्राॅल चलने लगी थी। खबर छपते छपते शाम ही हो गई थी। हमने एक प्रतीकात्मक तस्वीर के साथ खबर लगाकर अपने वरिष्ठों से लिंक शेयर की। शाम होने के बाद प्रिंट मीडिया की चहलकदमी बढ़ने लगती है और हमारा उस दिन का काम खत्म होने को होता है। अपने कुछ सूत्रों से बात करके मैंने फोटो आदि के लिए पतासाजी की। जैसा कि अक्सर होता है ऐसे इलाकों से फोटो मिल पाने में काफी वक्त लगता है। सो स्टोरी को अपडेट करके लगभग सात बजे तक मैं घर पहुंच चुका था।

भोजन करते वक्त आदत के मुताबिक टीवी खोला तो खबर और बढ़ी हो चुकी थी। कई चैनल वाले वालों तक खबर हो चुकी थी कि मामला छोटा नहीं है। सबसे पहले एक स्थानीय चैनल के रिपोर्टर ने ग्राउंड के फुटेज हासिल करने और उन्हें टीवी पर चलाने मे सफलता हासिल की। वह भयानक दृष्य था। विद्याचरण शुक्ल जमीन पर घायल बैठे पड़े थे। पानी मांगकर उनके कराहने की आवाजें सुनाई दे रही थीं। चारों तरफ लाषें। भयंकर डरा देने वाला मंजर था।

मुझे लौटना चाहिए। अगले पलों में मैंने तय कर लिया। मेरी ड्यूटी का वक्त पूरा हो गया था, लेकिन सामने जो दृष्य था, वह ड्यूटी के घंटे देखने वाला नहीं था। अगली 20 मिनट में मैं न्यूजरूम में था। न्यूजरूम के साथी टीवी सेट पर चिपके थे। कुछ साथी फोन पर लगातार जैसा भी अपडेट ले सकते थे, ले रहे थे। घायलों और मरने वालों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा था। लगभग 10 बजे तक कुछ तस्वीरें भी आ गई थीं। हम लगातार खबर अपडेट कर रहे थे। लेकिन सबसे ज्यादा जो सस्पेंस था वह नंदकुमार पटेल के अपहरण पर था। नक्सली महेन्द्र कर्मा को पहले भी टारगेट कर चुके थे। नंदकुमार पटेल उनके टारगेट में नहीं थी। कांग्रेस की पूरी एक लाइन के खात्मे की खबर सामने आ रही थी।

......शेष अगली किश्त

_ राकेश कुमार मालवीय.

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